धर्म-अध्यात्म

जानिए भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा से जुड़ी अनकही बातें

Tara Tandi
28 Jun 2022 5:17 AM GMT
जानिए भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा से जुड़ी अनकही बातें
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ओडिशा राज्य के पुरी शहर में भगवान जगन्नाथ (Lord Jagannath) का विशाल मंदिर है. इसे भारत के चार प्रमुख धामों में से एक माना जाता है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। ओडिशा राज्य के पुरी शहर में भगवान जगन्नाथ (Lord Jagannath) का विशाल मंदिर है. इसे भारत के चार प्रमुख धामों में से एक माना जाता है. हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) निकाली जाती है. रथ यात्रा के दौरान भगवान तीन अलग-अलग विशाल रथ पर सवार होकर अपने धाम से गुंडिचा मंदिर जाते हैं. इन रथों में बीच वाले रथों में बहन सुभद्रा और बगल वाले रथ में श्रीकृष्ण और बलराम की प्रतिमाएं होती हैं. भगवान जगन्नाथ की इस रथ यात्रा में शामिल होने के लिए दूर दूर से उनके भक्त आते हैं. माना जाता है कि इस रथ यात्रा (Rath Yatra) में शामिल होने वालों को 100 यज्ञों के बराबर पुण्यफल प्राप्त होता है. मृत्यु के बाद ये लोग मोक्ष प्राप्त करते हैं. इस बार भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा 1 जुलाई को निकाली जाएगी. इस मौके पर आपको बताते हैं इस यात्रा से जुड़ी तमाम रोचक बातें.

जगन्नाथ यात्रा से जुड़ी रोचक जानकारी
– भगवान जगन्नाथ का मंदिर 800 वर्ष से अधिक प्राचीन है. इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ ​विराजे हैं. यहां श्रीकृष्ण को जगन्नाथ के रूप में जाना जाता है और उनके साथ भाई बलराम और बहन देवी सुभद्रा की भी पूजा की जाती है.
– हर साल रथ यात्रा से करीब 15 दिन पहले भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ जाते हैं और 15 दिन तक बीमार रहते हैं. बीमारी के दौरान भगवान जगन्नाथ एकांतवास में रहते हैं. पूर्णत: स्वस्थ होने के बाद भगवान भक्तों को दर्शन देते हैं और भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है.
– इस रथ यात्रा में तीन रथ होते हैं. सबसे आगे चलने वाला रथ बलरामजी का होता है. बीच में सुभद्रा देवी का रथ होता है और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ होते हैं. बलरामजी के रथ को 'तालध्वज' कहते हैं, देवी सुभद्रा के रथ को 'दर्पदलन' या 'पद्म रथ' कहा जाता है और भगवान जगन्नाथ के रथ को 'नंदीघोष' या 'गरुड़ध्वज' कहते हैं.
– इन सभी रथों की पहचान रंग के आधार पर की जाती है. तालध्वज का रंग रंग लाल और हरा होता है. दर्पदलन काले और लाल या नीले और लाल रंग का होता है और नंदीघोष का रंग लाल और पीला होता है. सबसे ऊंचा नंदीघोष रथ है. इसकी ऊंचाई 45.6 फीट, इसके बाद बलरामजी का तालध्वज रथ 45 फीट ऊंचा और देवी सुभद्रा का दर्पदलन रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है.
– इस रथ यात्रा की तैयारी अक्षय तृतीया के दिन से शुरू कर दी जाती है. सभी रथ नीम की पवित्र और परिपक्व लकड़ियों से बनाए जाते हैं, जिसे 'दारु' कहते हैं. इन रथों के निर्माण के लिए में किसी भी प्रकार के कील या कांटे या अन्य किसी धातु का प्रयोग नहीं होता है.
– ढोल, नगाड़ों, तुरही और शंखध्वनि के साथ आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को ये रथ यात्रा प्रारंभ होती है. माना जाता है कि इस यात्रा के दौरान भगवान अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाते हैं. वहां तीनों देव 7 दिनों तक आराम करते हैं और दशमी तिथि को वापस मुख्य मंदिर लौट आते हैं.
– कहा जाता है कि रथ यात्रा के दौरान रथ खींचने से इंसान के सारे पापों का खात्मा होता है और उसे 100 जन्मों के पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है. रथ खींचने वाले को सौभाग्यवान माना जाता है
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