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हर साल ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि (Jyeshtha Purnima) को कबीर दास की जयंती के रूप में मनाया जाता है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हर साल ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि (Jyeshtha Purnima) को कबीर दास की जयंती के रूप में मनाया जाता है. इस बार कबीर जयंती 14 जून मंगलवार को पड़ रही है. माना जाता है कि कबीर दास का जन्म उत्तर प्रदेश के मगहर में हुआ था. कहा जाता है कि जब कबीर दास का जन्म हुआ था, उस समय में समाज में हर तरफ बुराइयां और पाखंड फैला हुआ था. कबीर दास जी ने अपने जीवन में समाज से पाखंड, अंधविश्वास को दूर करने की भरसक कोशिश की. अपनी रचनाओं में भी वो आडंबर और अंधविश्वास का विरोध करते रहे. यही कारण है कि आज भी संत कबीर दास को समाज सुधारक के रूप में जाना जाता है. आइए कबीरदास की जयंती के मौके पर आपको बताते हैं उनके जीवन से जुड़ी खास बातें.
जन्म को लेकर हैं कई मत
संत कबीर दास के जन्म और उनकी जाति को लेकर अलग अलग मत हैं. कहा जाता है कि इनका जन्म रामानंद गुरु की आशीर्वाद से एक विधवा ब्रह्माणी के गर्भ से हुआ था. लेकिन लोक लाज के भय से उन्होंने नन्हें कबीर को काशी के पास लहरतारा नामक ताल के पास छोड़ दिया था. इसके बाद एक जुलाहे ने इन्हें पाला. वहीं कुछ लोगों का मत है कि कबीर दास का जन्म से मुस्लिम थे, लेकिन उन्हें रामानंद से राम नाम का ज्ञान मिला था.
निरक्षर थे कबीर
कबीरदास जी के लिए कहा जाता है कि उन्होंने कभी कोई आधिकारिक शिक्षा हासिल नहीं की. वे निरक्षर थे. उन्होंने जितने भी दोहों की रचना की, वे केवल इनके मुख से बोले गए हैं. लेकिन कबीर रामानंद को अपना गुरु मानते थे और जीवनभर गुरु परंपरा का निर्वाह करते रहे.
इस तरह कबीर बने रामानंद के शिष्य
कहा जाता है कि रामानंद ने इन्हें अपना निकटतम शिष्य बनाने से इंकार कर दिया था. लेकिन एक दिन जब रामानंद तालाब के किनारे स्नान कर रहे थे, तो उन्होंने संत कबीर दास को दो जगह पर एक साथ भजन गाते देखा. इसके बाद वो समझ गए कि कबीर दास असाधारण हैं. इसके बाद उन्होंने कबीर दास को अपना शिष्य बना लिया.
अंधविश्वास के खिलाफ
कबीर दास अंधविश्वास के खिलाफ थे. कहा जाता है कबीर दास के समय में समाज में एक अंधविश्वास था कि जिसकी मृत्यु काशी में होगी वो स्वर्ग जाएगा और मगहर में होगी वो नर्क. इस भ्रम को तोड़ने के लिए कबीर ने अपना जीवन काशी में गुजारा, जबकि प्राण मगहर में त्यागे थे.
मृत्यु के समय भी दिखाया चमत्कार
कहा जाता है कि कबीर दास ने मृत्यु के समय भी लोगों को चमत्कार दिखाया था. कबीर दास को हिंदू और मुस्लिम दोनों ही धर्म के लोग मानते थे. ऐसे में जब उनकी मृत्यु हुई तो दोनों धर्म के लोग उनका अंतिम संस्कार करने के लिए आपस में विवाद करने लगे. कहा जाता है इस विवाद के बीच जब उनके मृत शरीर से चादर हटाई गई, तो वहां फूलों का ढेर मिला. इसके बाद दोनों धर्म के लोगों ने उन फूलों का बंटवारा कर लिया और अपने अपने अनुसार उनका अंतिम संस्कार किया.
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