धर्म-अध्यात्म

जानिए कालाष्टमी के दिन यह पौराणिक कथा, मिलेगा व्रत का पूर्ण लाभ

Teja
21 April 2022 9:57 AM GMT
जानिए कालाष्टमी के दिन यह पौराणिक कथा, मिलेगा व्रत का पूर्ण लाभ
x
वैशाख मा​ह का कालाष्टमी व्रत 23 अप्रैल दिन शनिवार को रखा जाएगा. प्रत्येक माह के कृष्ण अष्टमी को कालाष्टमी व्रत (Kalashtami Vrat) रखते हैं

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | वैशाख मा​ह का कालाष्टमी व्रत 23 अप्रैल दिन शनिवार को रखा जाएगा. प्रत्येक माह के कृष्ण अष्टमी को कालाष्टमी व्रत (Kalashtami Vrat) रखते हैं. काशी के ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट के अनुसार, वैशाख कृष्ण अष्टमी तिथि 23 अप्रैल को प्रात: 06:27 बजे से शुरु होकर अगले दिन प्रात: 04:29 बजे तक है. कालाष्टमी व्रत वाले दिन साध्य योग, त्रिपुष्कर योग और सर्वार्थ सिद्धि योग बना हुआ है. इस योग में काल भैरव की पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती है, कार्यों में सफलता और रोग एवं भय से मुक्ति मिलती है. जो लोग कालाष्टमी व्रत रखेंगे, उनको कालाष्टमी व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए. आइए जानते हैं इसके बारे में.

कालाष्टमी व्रत कथा
पौराणिक ​​कथा के अनुसार, एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनो देवों में सर्वश्रेष्ठ कौन है, इस बात को लेकर बहस हो रही थी. भगवान विष्णु ने स्वयं के श्रेष्ठ होने के तर्क दिए, वैसे ब्रह्मा जी ने और भगवान शिव ने भी दिए. भगवान शिव और विष्णु जी एक बात पर सहमत होते हुए दिखाई दिए, लेकिन ब्रह्मा जी दोनों देवों के बातों से सहमत नहीं थे.
इस दौरान ब्रह्मा जी अत्यधिक क्रोधित हो गए और उन्होंने भगवान शिव को कुछ अपशब्द कह दिए. इस बात को भगवान शिव ने अपना अपमान समझा. फिर क्या था, वे भी क्रोधित के वशीभूत होकर स्वयं से ही काल भैरव को प्रकट कर दिया. भगवान भैरव शिव के पांचवे अवतार हैं.
महाकालेश्वर के नाम से प्रसिद्ध भगवान भैरव हाथ में छड़ी लेकर कुत्ते पर सवार थे. उन्होंने देखा कि ब्रह्मा जी के क्रोध में हैं और उनका पांचवां सिर जल रहा है. भैरव ने ब्रह्मा जी का वह सिर काट दिया. भगवान शिव के इस रौद्र रूप को देखकर ब्रह्मा जी ने काल भैरव से अपनी गलती की माफी मांगी.
सिर काटने के कारण काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का आरोप लगा. उधर भगवान शिव अपने सामान्य स्वरुप में आ गए. काल भैरव को ब्रह्म हत्या से मुक्त होने के लिए शिव जी ने उनको सभी तीर्थ स्थलों का भ्रमण करने का सुझाव दिया.
उसके बाद काल भैरव तीर्थ यात्रा पर निकल गए. काफी वर्षों के बाद जब वे शिव की नगरी काशी पहुंचे तो ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त हो गए और काशी के कोतवाल बनकर वहीं पर रहने लगे. आज भी वाराणसी में जो लोग काशी विश्वनाथ के दर्शन करने जाते हैं, वे बाबा काल भैरव के मंदिर जरूर जाते हैं, तभी वाराणसी की यात्रा पूर्ण मानी जाती है.


Teja

Teja

    Next Story