धर्म-अध्यात्म

तुलसी का पत्ता तोड़ने से पहले जान लें ये नियम

Tara Tandi
11 July 2021 7:56 AM GMT
तुलसी का पत्ता तोड़ने से पहले जान लें ये नियम
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हिंदू धर्म में तुलसी का पौधा बहुत महत्वपूर्ण होता है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | हिंदू धर्म में तुलसी का पौधा बहुत महत्वपूर्ण होता है. शास्त्रों में भी इसके महत्व के बारे में बताया गया है. इतनी ही नहीं, इसका इस्तेमाल औषधीय के रूप में भी किया जाता है. तुलसी पत्ते का इस्तेमाल हर पूजा में किया जाता है. मान्यता है कि इसके बिना कोई भी पूजा अधूरी मानी जाती है. तुलसी भगवान विष्णु की बहुत प्रिय है. इसके अलावा हनुमानजी की पूजा अनुष्ठान में भी तुलसी का उपयोग होता है. हिंदू धर्म में तुलसी और गंगाजल को बासी नहीं माना गया है. कहते हैं कि जहां तुलसी की विधि- विधान से पूजा होती है वहां हमेशा सुख- समृद्धि बनी रहती है. लेकिन क्या आप जानते हैं तुलसी के पत्ते को तोड़ने से पहले उसके कुछ नियम होते हैं. आइए जानते हैं इन नियमों के बारे में.

1. वास्तु शास्त्र के अनुसार, तुलसी के पौधे को उत्तर और पूर्व दिशा में लगाने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है. इसके पौधे को रसोई के पास बिल्कुल नहीं लगाना चाहिए. ऐसा करने से नकारात्मक उर्जा बढ़ती है.
2. भगवान विष्णु को तुलसी बहुत प्रिय हैं. लेकिन इसका इस्तेमाल भगवान शिव और उनके पुत्र गणेश को अर्पित नहीं करना चाहिए. मान्यता है कि इसके पत्तों को बिना स्नान के नहीं छूना या तोड़ना चाहिए.
3. अगर किसी कारण से तुलसी सूख जाए तो फेंकने की बजाय पवित्र नदी प्रवाहित करें या मिट्टी में दबा देना चाहिए.
4. रविवार के दिन तुलसी का पत्ता तोड़ना अच्छा नहीं होता है. ये दिन भगवान विष्णु का प्रिय दिन माना जाता है. इसलिए तुलसी का पत्ता तोड़ने से घर में अशुभता आती है.
5. तुलसी के पत्ते को एकादशी, संक्रान्ति, सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण और शाम के समय में तुलसी का पत्ता नहीं तोड़ना चाहिए. कहते हैं कि तुलसी के पत्तों को कभी भी नाखूनों से नहीं तोड़ना चाहिए. ऐसा करने से दोष लगता है. आप नाखूनों की जगह उंगलियों का इस्तेमाल कर सकते हैं.
तुलसी का वैज्ञानिक महत्व
तुलसी में एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं. इसका इस्तेमाल करने से बीमारियों से दूर रहते हैं. तुलसी का पौधा लगाने से आसपास की हवा शुद्ध रहती है. इसका इस्तेमाल करने से श्वास संबंधी बीमारियां दूर होती है.
नोट- यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.


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