धर्म-अध्यात्म

जानिए भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी व्रत की पूजा विधि और महत्व

Tara Tandi
19 March 2022 4:03 AM GMT
जानिए भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी व्रत की पूजा विधि और महत्व
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हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह में दो बार चतुर्थी पड़ती है। एक कृष्ण पक्ष और दूसरी शुक्ल पक्ष में।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक माह में दो बार चतुर्थी पड़ती है। एक कृष्ण पक्ष और दूसरी शुक्ल पक्ष में। चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित है। मान्यता है कि इस दिन भगवान गणेश की कृपा पाने के लिए पूजा-अर्चना और उनकी उपासना की जाती है। चतुर्थी व्रत को मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला माना गया है। हर माह में आने वाली चतुर्थी का अपना अलग महत्व होता है। चैत्र माह की कृष्ण पक्ष को पड़ने वाली चतुर्थी को भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस बार संकष्टी चतुर्थी 21 मार्च, सोमवार को पड़ रही है। इस व्रत को करने से विघ्नहर्ता गणेश भगवान अपने भक्तों की सभी परेशानियां और बाधाएं दूर करते हैं। मान्यता है कि इस दिन जो भी व्यक्ति सच्चे मन से गणपति बप्पा की पूजा अर्चना करता है, उसके जीवन से सभी दुःख और संकट दूर हो जाते हैं। आइए जानते हैं भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी व्रत का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि....

भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त
तिथि- भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी 21 मार्च सोमवार को पड़ रही है।
शुभ मुहुर्त- 21 मार्च सुबह 8:20 से 22 मार्च सुबह 6:24 तक,
वहीं चन्द्रोदय- रात 8 बजकर 23 पर होगा।
भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी व्रत की पूजा विधि
भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह उठकर नित्य कर्म और स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लें और गणेश भगवान की पूजा-अर्चना करें। उन्हें तिल, गुड़, लड्डू, दुर्वा, चंदन और मोदक अर्पित करें। साथ ही गणेश जी की आरती भी पढ़ें। इसके बाद सारा दिन व्रत रहें। रात में चांद निकलने से पहले गणेश भगवान की पूजा करें एवं चंद्रमा को अर्घ्य दें।
भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी महत्व
गौरी पुत्र गणेश को सर्वप्रथम पूजनीय देव माना गया है। हर शुभ कार्य से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता भी कहा जाता है। ऐसे में चतुर्थी व्रत करने और सच्चे मन से भगवान की अराधना करने से भक्तों की सभी बाधाएं दूर होती हैं।
धार्मिक मान्यता के अनुसार गणपति बप्पा की पूजा अर्चना करने से यश, धन, वैभव और अच्छी सेहत की प्राप्ति होती है। चतुर्थी के दिन उपवास रखा जाता है और चंद्र दर्शन के बाद ही व्रत खोला जाता है। इससे भगवान प्रसन्न होते हैं और भक्तों को शुभ फल देते हैं।
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