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लोहड़ी के पर्व पर जानें आग जलाने का मुहूर्त, पूजा विधि और मान्यताएं
लोहड़ी वैसे तो पंजाब के मुख्य त्योहार के रूप में जाना जाता है। लेकिन उत्तर भरत में भी इस त्योहार को बहुत जोर शोर से मनाया जाता है। ये पर्व मकर संक्रांति के एक दिन पहले मनाया जाता है। पंजाबी समाज के लोग घरों के दरवाजे पर लोहड़ी प्रज्वलित कर मूंगफली, मक्के फुल्ले व तिल …
लोहड़ी वैसे तो पंजाब के मुख्य त्योहार के रूप में जाना जाता है। लेकिन उत्तर भरत में भी इस त्योहार को बहुत जोर शोर से मनाया जाता है। ये पर्व मकर संक्रांति के एक दिन पहले मनाया जाता है। पंजाबी समाज के लोग घरों के दरवाजे पर लोहड़ी प्रज्वलित कर मूंगफली, मक्के फुल्ले व तिल की रेवड़ी लोहड़ी की अग्नि में अर्पित कर सुख समृद्धि की कामना करते हैं। विवाह के बाद की पहली लोहड़ी का विशेष महत्व होता है। इसके अलावा जब किसी के घर संतान होती है तो उसकी भी पहली लोहड़ी काफी ख़ास मानी जाती है। लोहड़ी से जुड़े लोकगीत गाकर लोहड़ी मांगने की परंपरा भी है। इस बार मकर संक्रांति 15 जनवरी की है। इसीलिए कई स्थान पर लोहड़ी का पर्व 14 जनवरी यानी आज भी मनाया जा रहा है। आइए जानते हैं लोहड़ी की पूजा विधि, महत्व, अग्नि का धार्मिक महत्व और अन्य बातों के बारे में।
लोहड़ी का महत्व
लोहड़ी का विशेष महत्व है। लोहड़ी के दिन वर्ष की सबसे लंबी रात होती है। इसके बाद रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं। लोहड़ी कृषि से जुड़ा त्योहार है, ऐसे में किसानों में भी इस पर्व को लेकर खासा उत्साह रहता है। खेतों में अनाज लहलहाने लगते हैं और मौसम अनुकूल होने लगता है। इस दिन पंजाबी लोग नये वस्त्र पहनकर सज-धजकर ढोल गानों पर लोक नृत्य, भांगड़ा करते हैं।
लोहड़ी में अग्नि पूजा महत्व
लोहड़ी के पर्व का मुख्य आकर्षण रात को जलाई जाने वाली आग है जिसे लोहड़ी कहा जाता है। लोहड़ी में जलने वाली आग अग्निदेव का प्रतिनिधित्व करता है। इस दिन रात्रि में एक स्थान पर आग जलाई जाती है। सभी लोग इस आग के इर्द-गिर्द इकट्ठा होते हैं। सभी लोग मिलकर अग्निदेव को तिल,गुड़ आदि से बनी मिठाइयां अर्पित करते हैं। लोककथाओं के अनुसार लोहड़ी पर जलाए गए अलाव की लपटें लोगों के संदेश और प्रार्थनाओं को सूर्य देवता तक ले जाती हैं ताकि फसलों को बढ़ने में मदद मिल सके। बदले में सूर्य देव भूमि को आशीर्वाद देते हैं। लोहड़ी के अगले दिन को मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है।
लोहड़ी की तिथि
ज्योतिषियों के मुताबिक, इस साल मकर संक्रांति 15 जनवरी को पड़ रही है। लोहड़ी एक दिन पहले यानी 14 जनवरी को मनाई जाएगी। इस दिन रवि योग समेत कई बेहद शुभ योग बन रहे हैं। इन योगों में लोहड़ी मनाने से शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं।
लोहड़ी आग जलाने का मुहूर्त
लोहड़ी की अग्नि प्रज्ज्वलित करने का शुभ मुहूर्त सायं 05 बजकर 34 मिनट से लेकर रात्रि 08 बजकर 12 मिनट तक है।
लोहड़ी की पूजा विधि
लोहड़ी पर एक स्थान पर लकड़ियों को अग्नि दी जाती है।
इसके बाद सभी लोग अग्नि की परिक्रमा लगाते हैं और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
इस दिन लोग खेत-खलिहानों में एकठ्ठा हो कर एक साथ लोहड़ी का त्योहार मनाते हैं।
इस दौरान लोग एक दूसरे को बधाई देते हैं ।
फिर रेवड़ी, गजक आदि वितरित की जाती है।
लोहड़ी से जुड़ी मान्यताएं
लोहड़ी से कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। आइए जानते हैं इससे जुडी मान्यताओं पर-
पंजाब में लोहड़ी का त्योहार दुल्ला भट्टी से जोड़कर मनाया जाता है। मुगल शासक अकबर के समय में दुल्ला भट्टी पंजाब में गरीबों के मददगार माने जाते थे। उस समय लड़कियों को गुलामी के लिए अमीरों को बेच दिया जाता था। कहा जाता है कि दुल्ला भट्टी ने ऐसी बहुत सी लड़कियों को मुक्त कराया और उनकी फिर शादी कराई।
इस त्योहार के पीछे धार्मिक आस्थाएं भी जुड़ी हुई हैं। मान्यता है कि लोहड़ी पर आग जलाने को लेकर मान्यता है कि यह आग राजा दक्ष की पुत्री सती की याद में जलाई जाती है।
बहुत से लोगों का मानना है कि लोहड़ी का नाम संत कबीर की पत्नी लोई के नाम पर पड़ा। पंजाब के कुछ ग्रामीण इलाकों में इसे लोई भी कहा जाता है
लोहड़ी को पहले कई जगहों पर लोह भी बोला जाता था। लोह का अर्थ होता है लोहा। इसे त्योहार से जोड़ने के पीछे बताया जाता है कि फसल कटने के बाद उससे मिले अनाज की रोटियां लोहे के तवे पर सेंकी जाती हैं। इस तरह फसल के उत्सव के रूप में मनाई जाने वाली लोहड़ी का नाम लोहे से पड़ा।
पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि लोहड़ी होलिका की बहन थीं। लोहड़ी अच्छी प्रवृत्ति वाली थीं। इसलिए उनकी पूजा होती है और उन्हीं के नाम पर त्योहार मनाया जाता है।
कई जगहों पर लोहड़ी को तिलोड़ी के तौर पर भी जाना जाता था। यह शब्द तिल और रोड़ी यानी गुड़ से मिलकर बना है। बाद में तिलोड़ी को ही लोहड़ी कहा जाने लगा।
लोहड़ी से जुड़ा लोकगीत
लोहड़ी के दिन आग के पास घेरा बनाकर दुल्ला भट्टी की कहानी सुनी जाती है। लोहड़ी पर दुल्ला भट्टी की कहानी सुनने का खास महत्व होता है। इसके अलावा इस दिन आग के चारों ओर नाच गाना करते हैं। इस दौरान 'सुंदर मुंदरिए' करके एक लोकगीत गाने का भी प्रचलन है। , जिसमें दुल्ला भट्टी का जिक्र आता है। ऐसे में यदि आप लोहड़ी का पर्व मनाने जा रहे हैं तो यहां सुंदर मुंदरिये लोकगीत के बोल दिए जा रहे हैं।
सुन्दर मुंदरिए
तेरा कौन विचारा
दुल्ला भट्टीवाला
दुल्ले दी धी व्याही
सेर शक्कर पायी
कुड़ी दा लाल पताका
कुड़ी दा सालू पाटा
सालू कौन समेटे
मामे चूरी कुट्टी
जिमींदारां लुट्टी
जमींदार सुधाए
गिन गिन पोले लाए
इक पोला घट गया
ज़मींदार वोहटी ले के नस गया
इक पोला होर आया
ज़मींदार वोहटी ले के दौड़ आया
सिपाही फेर के ले गया
सिपाही नूं मारी इट्ट
भावें रो ते भावें पिट्ट
साहनूं दे लोहड़ी
तेरी जीवे जोड़ी
साहनूं दे दाणे तेरे जीण न्याणे