धर्म-अध्यात्म

होलिका दहन क्यों मनाई जाती है होली से पहले जानें इससे संबंधित कथा

Teja
11 March 2022 10:20 AM GMT
होलिका दहन क्यों मनाई जाती है होली से पहले जानें इससे संबंधित कथा
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देश भर में रंगों के त्योहार होली की तैयारी जोरों पर है। होली का त्योहार फाल्गुन महीने में पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | देश भर में रंगों के त्योहार होली की तैयारी जोरों पर है। होली का त्योहार फाल्गुन महीने में पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। होली का त्योहार भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। होली का त्योहार पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। पहले दिन होलिका दहन के रूप में और दूसरे दिन रंगोत्सव के रूप में मनाया जाता है। होलिका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होती है।

धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक होलिका दहन की कहानी विष्णु के भक्त प्रह्लाद, उसके राक्षस पिता हिरण्यकश्यप और उसकी बुआ होलिका से जुड़ी हुई है। मान्यता है कि होलिका की आग बुराई को जलाने का प्रतीक है। इसे छोटी होली के नाम से भी पुकारा जाता है। इसके अगले दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के उपलक्ष्य में होली मनाई जाती है। इस साल होलिका दहन 17 मार्च और होली 18 मार्च को मनाया जाएगा।
होली पर्व से जुड़ी हुई अनेक कहानियां हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की। प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के अहंकार में वह स्वयं को ही भगवान मानने लगा था। उसने अपने राज्य में भगवान के नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी।
हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से नाराज होकर हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग कभी भी नहीं छोड़ा। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में जल नहीं सकती। हिरण्यकश्यप ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आदेश का पालन हुआ, परन्तु आग में बैठने पर होलिका तो आग में जलकर भस्म हो गई, परन्तु प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ।
अधर्म पर धर्म की, नास्तिक पर आस्तिक की जीत के रूप में भी देखा जाता है। उसी दिन से प्रत्येक वर्ष ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में होलिका जलाई जाती है। प्रतीक रूप से यह भी माना जाता है कि प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है। वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका (जलाने की लकड़ी) जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद (आनंद) अक्षुण्ण रहता है।


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