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साल के 12 महीनों में 24 एकादशी पड़ती है. एक महीने में दो एकादशी आती है जो कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में पड़ती है. 16 अप्रैल 2023 को वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन वरुथिनी एकादशी आई है. इसमें भी भगवान विष्णु की ही पूजा का प्रावधान बताया गया है. एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने और व्रत कथा पढ़ने से अनेक लाभ मिलते हैं. एकादशी की पूजा बिना कथा के अधूरी मानी जाती है और आज हम आपको वरुथिनी एकादशी की कथा क्या है उसके बारे में विस्तार से बताएंगे.
वरुथिनी एकादशी की कथा (Varuthini Ekadashi Katha in Hindi)
एकादशी की व्रत कथा पढ़ने या सुनने से कष्टों से मुक्ति मिल जाती है. मान्यता है कि यह कथा भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताई थी जिसके बाद उनके जीवन में बहुत बदलाव आए थे. 16 अप्रैल को पड़ने वाली वरुथिनी एकादशी पर आपको ये कथा पढ़नी चाहिए. पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर राजा मांधाता का साम्राज्य था. राजा बहुत दानवीर और धर्मात्मा जैसे थे. एक बार वो जंगल में तपस्या कर रहे थे कि वहां भालू आया और उनके पैरों को चबाने लगा. राजा अपने तप में इतने लीन थे कि उन्हें एहसास ही नहीं हुआ. भालू उनके पैरों को पकड़कर जंगल में घसीटकर ले गया और राजा बुरी तरह जख्मी हो गए. इसके बाद राजा ने भगवान को याद किया और प्राणों की रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे.
भक्त की पुकार सुनकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने भालू को मार डाला. भालू के हमले से राजा मंधाता अपंग हो गए और उन्हें बहुत शारीरिक पीड़ा थी. इस पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए राजा ने भगवान विष्णु से इसका उपाय पूछा. तो भगवान विष्णु ने कहा कि तुम्हारे पिछले जन्म के यही कर्मफल हैं. तुम्हे अगर इससे मुक्ति चाहिए तो वैशाख के वरुथिनी एकादशी का व्रत और पूजा विधिवत करो. राजा ने भगवान के बताए उपाय को किया और वो शारीरिक पीड़ा से मुक्त हो गया. अंत में मृत्यु हुई और विष्णु जी के बैकुंठ लोक चला गया. ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को इंसान अपने कष्टों से मुक्त होने के लिए करते हैं.
वरुथिनी एकादशी व्रत की पूजा विधि (Varuthini Ekadashi Vrat Puja Vidhi)
सबसे पहले सुबह उठकर स्नान कर लें. हो सके तो स्नान गंगाजी में करें अगर संभव नहीं है तो गंगाजल नहाने के पानी में दो बूंद डालकर नहा सकते हैं. इसके बाद हाथ में थोड़ा गंगाजल और अक्षत लेकर भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने व्रत का संकल्प लें और उन्हें प्रणाम करें. इसके बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें और स्वच्छ आसन पर बैठ जाएं. अब भगवान विष्णु की तस्वीर के सामने बैठ जाएं. उन्हें तिलक करें, अक्षत, फूल, धूप-दीप और भोग अर्पित करें. भगवान विष्णु के पूजन में तुलसी की पत्तियों को जरूर शामिल करें वरना पूजा अधूरी मानी जाती है. पूजान के दौरान ॐ नमो भगवत वासुदेवाय नम: का जाप जरूर करें. इसके बाद रात में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें. पूरे दिन समय समय पर भगवान का नाम लेते रहें और रात में पूजा स्थल के पास कीर्तन या जागरण कर सकते हैं.
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Apurva Srivastav
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