धर्म-अध्यात्म

जानिए माघ पूर्णिमा व्रत कथा, और इस दिन का महत्त्व

Tara Tandi
25 Feb 2021 6:14 AM GMT
जानिए माघ पूर्णिमा व्रत कथा, और इस दिन का महत्त्व
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हिंदू धर्मशास्त्रों में पूर्णिमा के दिन का विशेष महत्व है.

जनता से रिश्ता बेवङेस्क | हिंदू धर्मशास्त्रों में पूर्णिमा के दिन का विशेष महत्व है. हर महीने शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि को पूर्णिमा तिथि होती है. इस दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं से सुशोभित होकर उदित होता है. पूर्णिमा के दिन दान और स्नान का विशेष महत्व है. इस दिन कुछ लोग व्रत रखकर चंद्रमा को अर्घ्य भी देते हैं.

अब माघ मास की पूर्णिमा तिथि आने वाली है. लेकिन पूर्णिमा दो दिन की होने की वजह से लोगों के बीच काफी कन्फ्यूजन की स्थिति है. अगर आपके साथ भी ऐसी कोई दुविधा की स्थिति है, तो परेशान न हों, यहां जाने माघ मास की पूर्णिमा (Magh Purnima 2021) से जुड़ी अहम जानकारियां.

इस दिन रहें व्रत

पूर्णिमा तिथि 26 फरवरी 2021 दिन शुक्रवार को दोपहर 03 बजकर 49 मिनट से शुरू होगी और 27 फरवरी 2021 को दोपहर 01 बजकर 46 मिनट तक रहेगी. चूंकि उदया तिथि के हिसाब से पूर्णिमा तिथि 27 फरवरी को होगी. ऐसे में दान और स्नान के लिए 27 फरवरी का दिन बेहतर होगा. वहीं अगर आप व्रत रखते हैं और चंद्रमा को अर्ध्य देते हैं तो 26 फरवरी को व्रत रखें क्योंकि पूर्णिमा का चांद 26 फरवरी को ही दिखाई देगा.

पूर्णिमा का महत्व

पूर्णिमा तिथि चंद्रदेव और भगवान विष्णु को समर्पित होती है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है. दान-पुण्य और स्नान के अलावा लोग सत्यनारायण की कथा भी सुनते हैं. माना जाता है कि ऐसा करने से घर में धन धान्य की कोई कमी नहीं रहती, सौभाग्य में वृद्धि होती है और निःसंतान दंपति को सुयोग्य संतान प्राप्त होती है. पूर्णिमा के दिन दान, स्नान व भगवान नारायण की पूजा करने से वे प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी संकटों से रक्षा करते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.

माघ पूर्णिमा व्रत कथा

कांतिका नगर में धनेश्वर नाम का ब्राह्मण निवास करता था. वो अपना जीवन निर्वाह दान पर करता था. ब्राह्मण और उसकी पत्नी के कोई संतान नहीं थी. एक दिन उसकी पत्नी नगर में भिक्षा मांगने गई, लेकिन सभी ने उसे बांझ कहकर भिक्षा देने से इनकार कर दिया. तब किसी ने उससे 16 दिन तक मां काली की पूजा करने को कहा, उसके कहे अनुसार ब्राह्मण दंपत्ति ने ऐसा ही किया. उनकी आराधना से प्रसन्न होकर 16 दिन बाद मां काली प्रकट हुईं और मां काली ने ब्राह्मण की पत्नी को गर्भवती होने का वरदान दिया. साथ ही कहा कि अपने सामर्थ्य के अनुसार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम दीपक जलाओ. इस तरह हर पूर्णिमा के दिन तक दीपक बढ़ाती जाना जब तक कम से कम 32 दीपक न हो जाएं.

ब्राह्मण ने अपनी पत्नी को पूजा के लिए पेड़ से आम का कच्चा फल तोड़कर दिया. उसकी पत्नी ने पूजा की और फलस्वरूप वह गर्भवती हो गई. प्रत्येक पूर्णिमा को वह मां काली के कहे अनुसार दीपक जलाती रही. मां काली की कृपा से उनके घर एक पुत्र ने जन्म लिया, जिसका नाम देवदास रखा. देवदास जब बड़ा हुआ तो उसे अपने मामा के साथ पढ़ने के लिए काशी भेजा गया. काशी में उन दोनों के साथ एक दुर्घटना घटी जिसके कारण धोखे से देवदास का विवाह हो गया. देवदास ने कहा कि वह अल्पायु है परंतु फिर भी जबरन उसका विवाह करवा दिया गया. कुछ समय बाद काल उसके प्राण लेने आया लेकिन ब्राह्मण दंपत्ति ने पूर्णिमा का व्रत रखा था इसलिए काल उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाया. तभी से कहा जाता है कि पूर्णिमा के दिन व्रत करने से सभी संकटों से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं

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