धर्म-अध्यात्म

जानिए उत्तराखंड में स्थित कमलेश्वर मंदिर की खास पूजा, जहां निसंतान दंपत्तियों की भरती है गोद

Nilmani Pal
26 Nov 2020 3:41 PM GMT
जानिए उत्तराखंड में स्थित कमलेश्वर मंदिर की खास पूजा, जहां निसंतान दंपत्तियों की भरती है गोद
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बैकुंठ चतुर्दशी के मौके पर यहां दो दिवसीय मेले का आयोजन होता है. जिसमें विशेष रूप से वो महिलाएं पहुंचती है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | हिंदू धर्म में कार्तिक महीने का विशेष महत्व माना जाता है. ये महीना भगवान विष्णु की आराधना के लिए महत्व रखता है. इस महीने में कई धार्मिक आयोजन व त्यौहार भी होते हैं. जो विशेष रूप से भगवान विष्णु को समर्पित होते हैं. ऐसा ही एक विशेष दिन है बैकुंठ चतुर्दशी(Baikunth Chaturdashi 2020) का. जो इस बार 28 नवंबर को है.


कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को विशेष रूप ने नारायण की पूजा का विधान है. ताकि मोक्ष की प्राप्ति की जा सके. वहीं इस विशेष दिन हिमालय की तलहटी में बसे उत्तराखंड के श्रीनगर में स्थित कमलेश्वर मंदिर(Kamleshwar Mandir) में खास पूजा अर्चना की जाती है. और इस पूजा से निसंतान दंपत्तियों की गोद भर जाती है.


मंदिर में मेले का होता है आयोजन

बैकुंठ चतुर्दशी(Baikunth Chaturdashi) के मौके पर यहां दो दिवसीय मेले का आयोजन होता है. और इस मेले में विशेष रूप से वो महिलाएं पहुंचती है जो लाख कोशिशों के बाद भी मां नहीं बन सकीं. संतान की इच्छा लिए महिलाएं इस मेले में पहुंचती है. जहां दीया हाथ में लेकर रात भर भगवान से प्रार्थना की जाती है. इस अनुष्ठान में शामिल होने के लिए बाकायदा रजिस्ट्रेशन तक होता है. और भाग्यशाली दंपत्तियों को इसमें शामिल होने का मौका मिलता है.


खड़े दीए की होती है पूजा

संतान की इच्छा के लिए महिलाएं बैकुंठ चतुर्दशी के दिन खड़े दीए की पूजा करती हैं. ये पूजा काफी कठिन भी मानी जाती है. इस पूजा में चतुर्दशी के दिन से शुरु हुए उपवास के बाद रात को मंदिर में स्थापित शिवलिंग के सामने महिलाएं हाथ में दीपक पकड़कर रात भर खड़ी रहती हैं. और भोलेनाथ से संतान प्राप्ति का वरदान मांगती हैं.


कमलेश्वर मंदिर से जुड़ी है ये प्राचीन कथातान

मान्यता है कि प्राचीन समय में इस मंदिर में भगवान विष्णु ने शिव शंकर की आराधना की थी. कहा जाता है कि उस दौरान उस पूजा के साक्षी कुछ निसंतान दंपति भी थे जिन्होंने भगवान शिव से संतान प्राप्ति की इच्छा व्यक्त की थी. तब शिव ने वरदान दिया था तभी से बैकुंठ चतुर्दशी की रात यहां निसंतान महिलाएं विशेष पूजा करती हैं और ईश्वर की कृपा से उनकी गोद भर जाती है.

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