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- जानिए गजानन महाराज की...
जनता से रिश्ता बेवङेस्क | गजानन महाराज का प्रकटोत्सव 4 से 6 मार्च 2021 तक मनाया जा रहा है। इसमें 3 दिवसीय कार्यक्रम होंगे, जिसमें श्रीजी का पारायण, चरण पादुका पूजन और भ्रमण तथा जलाभिषेक, कलश पूजन, यज्ञ और इसके बाद भंडारे या महाप्रसादी का वितरण होता है।
गजानन महाराज का प्राकट्य- गजानन महाराज का जन्म कब हुआ, उनके माता-पिता कौन थे, इस बारे में किसी को कुछ भी पता नहीं। पहली बार गजानन महाराज को शेगांव में 23 फरवरी 1878 में बनकट लाला और दामोदर नामक दो व्यक्तियों ने देखा। एक श्वेत वर्ण का सुंदर बालक झूठी पत्तल में से चावल खाते हुए 'गं गं गणात बूते' का उच्चारण कर रहा था।
गजानन महाराज का अपनी इंद्रियों पर पूर्ण नियंत्रण था। 'गं गं गणात बूते' का उच्चारण करने के कारण ही उनका नाम गजानन पड़ा। एक बार जब महाराज दिगंबर होकर तपस्या कर रहे थे तब एक स्त्री उन पर मोहित होकर उनके पास गई, लेकिन उसने देखा कि महाराज के तेज से नीचे रखी घास भस्म हो गई है। उस स्त्री को महाराज के प्रति गलत भाव रखने का बहुत पछतावा हुआ और उसने उनसे क्षमा मांगी।
गजानन महाराज के चित्र में उन्हें चिलम पीते हुए दिखाया जाता है। गजानन महाराज नियमित चिलम पीया करते थे, लेकिन उन्हें चिलम पीने की लत नहीं थी। माना जाता है कि वे अपने बनारस के भक्तों को खुश करने के लिए चिलम पीया करते थे। गजानन महाराज चमत्कारी महापुरुष थे। उनके कई चमत्कारों को भक्तों ने प्रत्यक्ष देखा है।
एक बार महाराज आंगन कोट में भ्रमण कर रहे थे। तेज गर्मी के कारण उन्हें प्यास लगी। उन्होंने वहां से गुजर रहे भास्कर पाटिल से पानी मांगा, लेकिन उसने पानी देने से मना कर दिया। तभी महाराज को वहां कुआं दिखा, जो 12 वर्षों से सूखा पड़ा था। महाराज कुएं के पास जाकर बैठ गए और ईश्वर का जाप करने लगे। जाप के तप से कुआं पानी से भर गया। इस तरह बहुत से चमत्कार उनके भक्तों के बीच प्रसिद्ध है।
समाधि : शेगांव के गजानन महाराज नाथ संप्रदाय के बहुत ही पहुंचे हुए दिगंबर संत थे। समाधि के करीब एक माह पूर्व उन्होंने पंढरपुर में श्रीविठ्ठल के समक्ष समाधि लेने का निर्णय लिया। समाधि लेने का विचार जब उन्होंने भक्तों को बताया तो उनके भक्तों में उदासी छा गई, लेकिन उन्होंने सभी को समझाया और समाधि का दिन नियुक्त किया।
गजानन महाराज ने अपनी समाधि का स्थान व समय अपने सभी भक्तों को बताया और उन्हें उपस्थित रहने को कहा। वह गणेश चतुर्थी का दिन था। उस पूरे दिन महाराज बहुत प्रसन्न थे और उन्होंने अपने भक्तों से बातें की और उन्हें समझाया कि वे सादा उनके साथ रहेंगे और अंत में बाळा भाऊ को अपने करीब बैठने के लिए कहा और 'जय गजानन' कहते हुए अंतिम सांस ली।
मान्यता अनुसार 8 सितंबर 1910 प्रात: 8 बजे उन्होंने शेगांव में समाधि ले ली। माना जाता है कि बाळा भाऊ की मृत्यु के उपरांत नंदुरगांव के नारायण के स्वप्न में महाराज ने दर्शन दिए और मठ की सेवा करने का आदेश दिया।
समाधि स्थल : जहां बाबा ने समाधि ली थी वहां आज एक विशाल मंदिर है। यह मंदिर काफी विशाल परिसर में बना है तथा महाराज की सामधि के दर्शन करने के लिए लंबी कतर लगती है। मंदिर परिसर में गजानन महाराज की प्रतिमा के अलावा समाधि स्थान, पादुका, महाराज का चिमटा, औजार, चिलम पीने का स्थान (जो आज भी गर्म रहता है) और प्राचीन हनुमान प्रतिमा मौजूद है। मंदिर में व्यवस्था काफी अच्छी रखी गई है। बहुत से सेवक अनुशासनबद्ध तरीके से मंदिर की व्यवस्था को बनाए रखने में जुटे दिखाई देते हैं।
महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के शेगांव में गजानन महाराज की समाधि है। समाधि स्थल पर प्रतिदिन लगभग 25 से 30 हजार लोग दर्शन करने आते हैं। मान्यता है कि भारत में एकमात्र ऐसा समाधि स्थल है जहां किसी भी वीआईपी के लिए अलग से कोई व्यवस्था नहीं है। सभी को लाइन में खड़े रहकर ही दर्शन करना होंगे। शायद तभी वीआईपी लोग गजानन महाराज के दरबार में कम ही जाते हैं।
आनंद सागर : शेगांव में 1908 में गजानन महाराज ट्रस्ट की स्थापना की गई। मुख्य मंदिर से करीब 2 किलोमीटर स्थित है आनंद सागर। यह भी गजानन महाराज ट्रस्ट का ही उद्यान, आध्यात्मिक स्थल व ध्यान केंद्र है। 325 एकड़ के क्षेत्र में बसे आनंद सागर सुंदर, सुसज्जित, प्राकृतिक स्थल से परिपूर्ण है जिसमें करीब 50,000 अलग-अलग प्रकार के वृक्ष, विभिन्न प्रकार के फूल और हजारों लताएं हैं। इसमें 50 एकड़ क्षेत्र में एक विशाल तालाब बनाया गया है, जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। तालाब के मध्य में टापू नुमा स्थान पर ध्यान केंद्र बनाया गया है, जो विवेक आनंद केंद्र (कन्याकुमारी) का प्रतिरूप है।
यहां पर बच्चों के खेलने के लिए झूले, फिसलपट्टियां और रेलगाड़ी है जो कि संपूर्ण क्षेत्र का भ्रमण कराती है। इसके अलावा म्यूजिकल फाउंटेन, फिश म्युजियम और बहुत से छोटे-बड़े मंदिर हैं जो लोगों को आकर्षित करते हैं। संपूर्ण क्षेत्र का भ्रमण करने के लिए 3 से 4 घंटे का समय लगता है। ध्यान केंद्र तक जाने के लिए पैदल रास्ते के अलावा वॉटर बोट की व्यवस्था भी है। कुल मिलाकर यह एक बहुत ही सुंदर, रमणिक व आध्यात्मिक स्थान है।
इस क्षेत्र की प्रमुखता है, इसका रखरखाव जो देखते ही बनता है। हर 10 कदम पर गजानन महाराज ट्रस्ट का एक सेवक उद्यान की स्वच्छता का ध्यान रखने हेतु उपस्थित रहता है। उद्यान में पीने के स्वच्छ पानी की नि:शुल्क व अल्पाहार, भोजन आदि की उचित व्यवस्था शुल्क पर है।
नंदुरा के हनुमान : इसके अलवा शेगांव से 50 किलोमीटर के क्षेत्र में स्थित है नंदुरा के हनुमान की प्रतिमा जो कि करीब 100 फुट ऊंची है। नंदुरा शेगांव से जलगांव की ओर जाते समय खामगांव से कुछ किलोमीटर आगे आता है। मूर्ति दर्शन हेतु गांव में अंदर जाने की आवश्यकता नहीं है। हाईवे पर ही सड़क के किनारे मूर्ति स्थापित है।