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मकर संक्रांति से एक दिन पहले लोहड़ी मनाई जाती है. किसानों के अलावा सिख समुदाय के लिए यह बहुत अहम उत्सव होता है. इस मौके पर एक खास कहानी सुनाई जाती है जो पंजाबी योद्धा दुल्ला भट्टी की बहादुरी की गाथा बताती है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। नए साल का धूमधाम से स्वागत करने के बाद लोहड़ी मनाने का इंतजार शुरू हो जाता है. लोहड़ी का त्योहार किसानों के लिए नए साल के आगाज की तरह होता है जब लोहड़ी की आग में किसान गेहूं की नई बालियां अर्पित करके अच्छे धन-धान्य की प्रार्थना करते हैं. वहीं पंजाबी समुदाय के लिए तो लोहड़ी एक बड़ा उत्सव होता है. वे नई बहु और बच्चे की पहली लोहड़ी बहुत धूमधाम से मनाते हैं. इस मौके पर भांगड़ा और गिद्दा किया जाता है. लोहड़ी को सर्दियों की विदाई और बसंत के आगमन के तौर पर भी देखा जाता है. इस साल लोहड़ी 13 जनवरी 2022, गुरुवार को मनाई जाएगी.
बांटते हैं तिल-गुड़
लोहड़ी और मकर संक्रांति के मौके पर तिल-गुड़, गजक, रेवड़ी एक-दूसरे को बांटी जाती हैं. लड़कियों से आग जलाकर उसकी पूजा की जाती है, उसमें रेवड़ी अर्पित की जाती हैं. रबी की फसल को आग में अर्पित करके सूर्य देव और अग्नि का आभार प्रकट किया जाता है. लोहड़ी के गाने गाए जाते हैं. इसके अलावा यह मौका पंजाबी योद्धा दुल्ला भट्टी को याद करने का भी होता है.
लड़कियों को बचाया था दुल्ला भट्टी ने
लोहड़ी के मौके पर आग के पास घेरा बनाकर दुल्ला भट्टी की कहानी भी सुनी जाती है. दुल्ला भट्टी एक बहादुर पंजाबी योद्धा थे, जिन्होंने मुगल काल में लड़कियों को बचाया था. यह बात मुगल बादशाह अकबर के समय की है जब कुछ अमीर व्यापारी सामान की तरह लड़कियों को बेचा करते थे, तब दुल्ला भट्टी ने अपनी बहादुरी से लड़ाई लड़कर न केवल लड़कियों को बचाया था बल्कि फिर उनकी शादी भी करवाई थी. इसलिए दुल्ला भट्टी को सम्मान देने के लिए लोहड़ी के मौके पर उनकी कहानी सुनाई जाती है. यह परंपरा तब से ही चली आ रही है.
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