धर्म-अध्यात्म

जानिए सर्पों की जीभ के कटे होने का वैज्ञानिक कारण और पौराणिक कथा

Gulabi
7 April 2021 10:07 AM GMT
जानिए सर्पों की जीभ के कटे होने का वैज्ञानिक कारण और पौराणिक कथा
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सांपों में देखने और सुनने की शक्ति काफी कम होती है, इसलिए कुदरत ने उन्हें जीभ दी है ताकि वे

सांपों में देखने और सुनने की शक्ति काफी कम होती है, इसलिए कुदरत ने उन्हें जीभ दी है ताकि वे उसका इस्तेमाल करके देख और सुन सकें. इसके साथ ही सांप जीभ के जरिए सूंघने और आसपास का तापमान जानने के लिए भी करते हैं.

अब सवाल उठता है कि आखिर सांपों की जीभ कटी क्यों होती है! इसका एक सामान्य सा उत्तर है कि सांप अपने जीभ के जरिए ही शिकार पकड़ता है और ये कटी जीभ सांप को शिकार के बारे में उसकी गर्मी, दूरी और दिशा सब बता देती है. कटे होने के कारण जीभ को अधिक फैलाव मिलता है जो शिकार को पकड़ने में मदद करता है.
ये है पौराणिक मान्यता
हालांकि इसको लेकर पौराणिक मान्यता बिल्कुल अलग है. पौराणिक कथा के अनुसार गरुड़ और सर्प दोनों सौतेले भाई हैं. सांपों की मां कद्रू ने छल से गरुड़ की मां विनथा को अपना दासी बना लिया था. उसके बाद सर्पों ने गरुड़ से कहा था कि यदि वे स्वर्ग से उनके लिए अमृत लेकर आएं तो उनकी मां को दासता से मुक्त कर दिया जाएगा.

तब गरुड़ ने अपनी मां को मुक्त करने के लिए स्वर्ग लोक पर आक्रमण कर दिया और सभी देवताओं को परास्त कर अमृत हासिल कर लिया. गरुड़ का पराक्रम देख कर भगवान विष्णु बहुत प्रसन हुए और उसके बाद उन्होंने गरुड़ को अपना वाहन बना लिया. उधर गरुड़ से युद्ध करते हुए इंद्र देव मूर्छित हो गए थे और जब उनकी मूर्छा टूटी तो उन्होंने गरुड़ को अमृत कलश ले जाते देख लिया और उनका पीछा करना शुरू कर दिया.

इंद्र ने गरुड़ पर अपने वज्र से प्रहार कर दिया, लेकिन भगवान विष्णु से अमरता का वरदान प्राप्त कर चुके गरुड़ को कुछ भी नहीं हुआ. यह देख इंद्र देव बहुत चिंतित हो गए और गरुड़ से बोले मैं तुमसे मित्रता करना चाहता हूं. गरुड़ देव ने इंद्र देव की मित्रता स्वीकार कर ली. उसके बाद इंद्र देव बोले, हे मित्र ये अमृत कलश जिन सर्पों को देने जा रहे हो, वे इसे पीने के बाद अमर हो जाएंगे और सृष्टि का विनाश करेंगे. इसलिए ये कलश मुझे वापस दे दो.

तब गरुड़ ने इंद्रदेव से कहा कि मित्र मैं यह अमृत कलश तुम्हें नहीं दे सकता क्यूंकि इस अमृत कलश को सर्पों को देकर मुझे अपनी माता को उनकी दासता से मुक्त कराना है.लेकिन जिस स्थान पर मैं इस अमृत कलश को रखूंगा, आप वहां से उसे उठाकर वापस ला सकते हैं. गरुड़ की ये बातें सुनकर इंद्रदेव प्रसन्न हो गए और बोले मित्र तुम मुझसे कोई वरदान मांगो. तब गरुड़देव ने कहा कि जिन सर्पों ने मेरी माता को छल से अपना दास बनाया था, वे सभी सर्प मेरा प्रिय भोजन बनें.

देवराज इंद्र से वरदान पाने के बाद गरुड़ अमृत का कलश ले कर सर्पों के पास गए और सर्पों से कहा कि मैं तुम्हारे लिए अमृत लेकर आया हूं, अब मेरी माता को दासता से मुक्त कर दो. सर्प गरुड़ के हाथ में अमृत देख कर खुश हो गए और कहा कि आज से तुम्हारी मां मुक्त हैं. उसके बाद गरुड़ ने अमृत को कुश के बने आसन पर रख दिया और सर्पों से कहा कि तुम लोग पवित्र हो, अमृत पियो. ये कहकर वे अपनी माता को लेकर वहां से चले गए.

उसके बाद सभी सर्पों ने विचार किया कि गरुड़ ने ऐसा क्यों कहा कि पवित्र हो, अमृत पियो. इसका मतलब हमें पहले स्नान कर पवित्र हो जाना चाहिए. इसके बाद सभी सर्प स्नान करने चले गए. इसी बीच घात लगा के बैठे देवराज इंद्र अमृत कलश को लेकर स्वर्ग लोक चले गए. उधर जब सर्प स्नान कर अमृत पीने के लिए आए तो उस कुश के आसन पर अमृत कलश नहीं मिला. तब उन्होंने सोचा कि जिस तरह हम सभी ने गरुड़ की माता को छल से दासी बनाया था, ये उसी का फल है.

अमृत कलश गायब हो जाने के बाद सभी सर्पों की अजर अमर होने की अभिलाषा शांत हो गई. सभी उस कुश के आसन को देख रहे थे, जिस पर गरुड़ देव ने अमृत रखा था. सभी सर्पों के दिमाग में आया कि हो सकता है, इस कुश के आसन पर अमृत गिरा हो. ये सोचकर वे सभी सर्प कुश के आसन को चाटने लगे जिससे सभी सर्पो की जीभ बीच से फट गई.


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