धर्म-अध्यात्म

जानिए पापमोचिनी एकादशी का पूजाविधि और महत्व

Tara Tandi
27 March 2022 3:15 AM GMT
जानिए पापमोचिनी एकादशी का पूजाविधि और महत्व
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जानिए पापमोचिनी एकादशी का पूजाविधि और महत्व

हिंदू पंचांग के अनुसार,चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदू पंचांग के अनुसार,चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। यह व्रत इस वर्ष 28 मार्च,सोमवार को है। इस दिन शंख,चक्र,गदा और कमल धारण करने वाले सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है। जाने-अनजाने में हुए पापों से मुक्ति व सर्वकामना सिद्धि के लिए शास्त्रों में इस व्रत का विधान बताया गया है।

पापमोचिनी एकादशी का महत्व
पदमपुराण में एकादशी तिथि को भगवान विष्णु का ही स्वरूप माना गया है। मान्यता है कि एकादशी का व्रत करने वाले भक्त को और कोई पूजा करने की आवश्यकता नहीं रह जाती है। इस व्रत को करने वाला प्राणी सभी सांसारिक सुखों को भोगता हुआ अंत में श्रीमन नारायण के धाम वैकुण्ठ को जाता है। पापमोचिनी एकादशी तो मनुष्य के सभी पापों को जलाकर भस्म कर देती है। इस व्रत को करने से सहस्त्र गोदान का फल मिलता है। ब्रह्म ह्त्या,सुवर्ण चोरी,सुरापान और गुरुपत्नी गमन जैसे महापाप भी इस व्रत को करने से दूर हो जाते हैं,अर्थात यह व्रत बहुत ही पुण्य प्रदान करने वाला है। यदि भक्तिपूर्वक सात्विक रहते हुए पापमोचिनी एकादशी का व्रत किया जाए तो संसार के स्वामी सर्वेश्वर श्री हरि संतुष्ट होकर अपने भक्तों के समस्त कष्टों का निवारण करते हैं। बड़े-बड़े यज्ञों से भगवान को उतना संतोष नहीं मिलता,जितना एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है। इस एकादशी की रात्रि में मन को प्रभु के चरणों में समर्पित कर रात्रि जागरण करके हरि कीर्तन करने से भगवान विष्णु अपने भक्तों पर कृपा करते हैं।
पूजाविधि
एकादशी से एक दिन पहले सूर्यास्त से पहले ही भोजन कर लें। इस दिन सुबह उठकर स्नान कर स्वच्छ और सात्विक रंगों के वस्त्र धारण करें और फिर मन में व्रत का संकल्प लें। संकल्प के उपरांत षोडषोपचार सहित श्री विष्णु की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु के सामने धूप-दीप जलाएं,आरती करें और व्रत की कथा पढ़ें। सात्विक रहते हुए जितना संभव हो ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का जप करें। इस दिन घर में विष्णुसहत्रनाम का पाठ करना भी कई गुणा फल देता है। दूसरे दिन द्वादशी को सुबह पूजन के बाद ब्राह्मण या गरीबों को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें,फिर स्वयं भोजन करें और व्रत का समापन करें।
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