धर्म-अध्यात्म

जानिए होलिका दहन करने का सही मुहूर्त

Gulabi Jagat
16 March 2022 3:45 PM GMT
जानिए होलिका दहन करने का सही मुहूर्त
x
रंगों का त्योहार होली हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि के दिन बाद मनाया जाता है
Holika Dahan 2022: रंगों का त्योहार होली हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि के दिन बाद मनाया जाता है। हिंदी कैलेंडर के अनुसार होली को साल की शुरुआत के बाद पड़ने वाला पहला बड़ा त्योहार कहा जाता है। होली का त्योहार होलिका दहन के साथ शुरू होता है, फिर इसके अगले दिन रंग-गुलाल के साथ होली खेली जाती है। इस बार होलिका दहन 17 मार्च 2022 को है फिर उसके एक दिन बाद 18 मार्च को होली खेली जाएगी। लेकिन 17 मार्च को होलिका दहन गोधूलि बेला में नहीं हो पाएगा। होलिका दहन भद्रा रहित होना चाहिए इस कारण होलिका दहन का शुभ मुहूर्त भद्रा के बाद मध्य रात्रि में होगा। 10 मार्च से होलाष्टक शुरू हो जाएगा, जो कि होलिका दहन तक रहेगा। इन आठ दिनों में हर तरह के शुभ और मांगलिक काम करने की मनाही होती है। ग्रंथों के मुताबिक इन दिनों में भगवान विष्णु की पूजा और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना शुभ होता है। इस बार होलिका दहन पर भद्रा की छाया रहेगी जिस वजह होलिका दहन मध्य रात्रि में होगा। आइए जानते हैं विस्तार से-
रात 1 बजे तक रहेगी भद्रा
होलिका दहन के दिन भद्रा का साया रहेगा। 17 मार्च को भद्रा दोपहर 01:30 बजे से मध्य रात्रि 01:13 बजे तक रहेगी। चूंकि होलिका दहन भद्रा रहित होना चाहिए, इस कारण होलिका दहन का शुभ मुहूर्त भद्रा के बाद मध्य रात्रि में होगा।
भद्रा पुच्छ मुहूर्त में कर सकते हैं होलिका दहन
चूंकि18 मार्च को प्रदोष काल में पूर्णिमा तिथि न होने कारण शास्त्रों के मतानुसार 17 मार्च को भद्रा के पुच्छ काल में भद्रा पुच्छ मुहूर्त रात्रि 09:08 बजे से रात्रि 10:20 बजे तक होलिका दहन कर सकते हैं।
भद्रा काल में मांगलिक कार्य या उत्सव का आरंभ या समाप्ति अशुभ मानी जाती है, इसलिए भद्रा काल की अशुभता को मानकर कोई भी व्यक्ति शुभ कार्य नहीं करता। करते होलिका दहन
कोई भी शुभ कार्य करने से पूर्व भद्रा का विशेष ध्यान रखा जाता है। भद्रा काल में मांगलिक कार्य या उत्सव का आरंभ या समाप्ति अशुभ मानी जाती है, इसलिए भद्रा काल की अशुभता को मानकर कोई भी व्यक्ति शुभ कार्य नहीं करता। कर्क, सिंह, कुंभ और मीन राशि में चंद्रमा के गोचर पर भद्रा विष्टीकरण का योग बनता है। इस अवधि में भद्रा पृथ्वी लोक में रहती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भद्रा सूर्य देव की पुत्री और शनिदेव की बहन है। भद्रा को क्रोधी स्वभाव का माना जाता है और उनके इसी स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ब्रह्माजी ने उन्हें कालगणना में एक प्रमुख अंग विष्टीकरण में स्थान दिया। हिंदी पंचांग के पांच प्रमुख अंग होते हैं- तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण। इसमें करण की संख्या 11 होती है। 11 करणों में 7वें करण विष्टि का नाम भद्रा है। मान्यता है कि ये तीनों लोक में भ्रमण करती है और इस कारण भद्रा काल में किसी भी प्रकार का कोई शुभ कार्य या उत्सव नहीं मनाए जाते है।
होलिका दहन पूजा-विधि
होलिका दहन की पूजा करने के लिए सबसे पहले स्नान करना जरूरी है। स्नान के बाद होलिका की पूजा वाले स्थान पर उत्तर या पूरब दिशा की ओर मुंह करके बैठ जाएं।
पूजा करने के लिए गाय के गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमा बनाएं। वहीं पूजा की सामग्री के लिए रोली, फूल, फूलों की माला, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी,.मूंग, बताशे, गुलाल नारियल, 5 से 7 तरह के अनाज और एक लोटे में पानी रख लें।
इसके बाद इन सभी पूजन सामग्री के साथ पूरे विधि-विधान से पूजा करें। मिठाइयां और फल चढ़ाएं। पूजा के साथ ही भगवान नरसिंह की भी विधि-विधान से पूजा करें और फिर होलिका के चारों ओर सात बार परिक्रमा करें।
Next Story