धर्म-अध्यात्म

मकर संक्रांति पर जानें धार्मिक और वैज्ञानिक कारण

14 Jan 2024 7:48 AM GMT
मकर संक्रांति पर जानें धार्मिक और वैज्ञानिक कारण
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इस वर्ष 15 जनवरी को मकर संक्रांति है। मकर संक्रांति के दिन ग्रहों के राजा सूर्य देव धनु से निकल कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। सूर्य के एक राशि से निकल कर दूसरी राशि में प्रवेश करने को ही संक्रांति कहते हैं। एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के बीच का समय ही सौर …

इस वर्ष 15 जनवरी को मकर संक्रांति है। मकर संक्रांति के दिन ग्रहों के राजा सूर्य देव धनु से निकल कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। सूर्य के एक राशि से निकल कर दूसरी राशि में प्रवेश करने को ही संक्रांति कहते हैं। एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के बीच का समय ही सौर मास है। पूरे वर्ष में कुल 12 संक्रान्तियां होती हैं, लेकिन मकर संक्रांति महत्वपूर्ण मानी जाती है। पौष मास में जब सूर्य उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इस अवसर को देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग त्योहार के रूप में मनाया जाता है।

सामान्यत: भारतीय पंचांग की सभी तिथियां चंद्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, लेकिन मकर संक्रांति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। मकर संक्रांति का बहुत बड़ा धार्मिक महत्व है। इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान के बाद दान करना शुभ माना जाता है। साथ ही मकर संक्रांति के दिन ही खरमास का समापन होता है और एक मास से जिन शुभ कार्यों पर रोक लगी होती है वो फिर से शुरू हो जाते हैं। मकर संक्रांति का सिर्फ धर्म ही नहीं विज्ञान में भी बहुत ज्यादा महत्व है।

ग्रहों के राजा सूर्य देव सभी 12 राशियों को प्रभावित करते हैं, लेकिन कर्क व मकर राशि में इनका प्रवेश अत्यंत महत्वपूर्ण है। इन दोनों राशियों में सूर्य देव का प्रवेश छ: माह के अंतराल पर होता है। वैज्ञानिक नजरिए की बात करें तो पृथ्वी की धुरी 23.5 अंश झुकी होने के कारण सूर्य छः माह तक पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध के निकट होता है और शेष छः माह दक्षिणी गोलार्द्ध के निकट होता है।

मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध के निकट होती है यानी उत्तरी गोलार्ध से अपेक्षाकृत दूर होता है, जिसकी वजह से उत्तरी गोलार्ध में रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं और इस समय सर्दी का मौसम होता है। वहीं मकर संक्रांति से सूर्य का उत्तरी गोलार्ध की ओर आना शुरू हो जाता है, इसलिए इस दिन से उत्तरी गोलार्ध में रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं और ठंड कम होने लगती है।

मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान, सूर्य की उपासना व तीर्थ स्थलों पर स्नान दान विशेष पुण्यकारी होता है। इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। मकर संक्रांति के दिन तिल का बहुत महत्व है। कहते हैं कि तिल मिश्रित जल से स्नान, शरीर में तिल का तेल मालिश करने से पुण्य फल प्राप्त होता है और पाप नष्ट हो जाते हैं। मकर संक्रांति का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व के अलावा आयुर्वेदिक महत्व भी है। इस दिन चावल, तिल और गुड़ से बनी चीजें खाई जाती हैं। तिल और गुड़ से बनी चीजों का सेवन करने से स्वास्थ्य अच्छा होता है और इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है।

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