धर्म-अध्यात्म

अहोई अष्टमी व्रत रखने का विधि -विधान... जानिए

Ritisha Jaiswal
27 Oct 2021 12:37 PM GMT
अहोई अष्टमी व्रत रखने का विधि -विधान... जानिए
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संतान की सुरक्षा और सुखी जीवन के लिए कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी व्रत रखने का विधान है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | संतान की सुरक्षा और सुखी जीवन के लिए कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी व्रत रखने का विधान है। इस वर्ष अहोई अष्टमी व्रत 28 अक्टूबर दिन गुरुवार को है। माताएं इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं और प्रदोष काल में अहोई माता ​की विधि विधान से पूजा करती हैं। पूजा के समय में अहोई अष्टमी व्रत कथा अवश्य सुनना चाहिए। इस व्रत को रखने और व्रत कथा का श्रवण करने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है। आइए जानते हैं अहोई अष्टमी व्रत कथा के बारे में।

अहोई अष्टमी व्रत कथा
एक समय एक नगर में एक साहूकार रहता था। उसका भरापूरा परिवार था। उसके 7 बेटे, एक बेटी और 7 बहुएं थीं। दिपावाली से कुछ दिन पहले उसकी बेटी अपनी भाभियों संग घर की लिपाई के लिए जंगल से साफ मिट्टी लेने गई। जंगल में मिट्टी निकालते वक्त खुरपी से एक स्याहू का बच्चा मर गया। इस घटना से दुखी होकर स्याहू की माता ने साहूकार की बेटी को कभी भी मां न बनने का श्राप दे दिया। उस श्राप के प्रभाव से साहूकार की बेटी का कोख बंध गया।
श्राप से साहूकार की बेटी दुखी हो गई। उसने भाभियों से कहा कि उनमें से कोई भी ए​क भाभी अपनी कोख बांध ले। अपनी ननद की बात सुनकर सबसे छोटी भाभी तैयार हो गई। उस श्राप के दुष्प्रभाव से उसकी संतान केवल सात दिन ही जिंदा रहती थी। जब भी वह कोई बच्चे को जन्म देती, वह सात दिन में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता था। वह परेशान होकर एक पंडित से मिली और उपाय पूछा।
पंडित की सलाह पर उसने सुरही गाय की सेवा करनी शुरु की। उसकी सेवा से प्रसन्न गाय उसे एक दिन स्याहू की माता के पास ले जाती है। रास्ते में गरुड़ पक्षी के बच्चे को सांप मारने वाली होता है, लेकिन साहूकार की छोटी बहू सांप को मारकर गरुड़ पक्षी के बच्चे को जीवनदान देती है। तब तक उस गरुड़ पक्षी की मां आ जाती है। वह पूरी घटना सुनने के बाद उससे प्रभावित होती है और उसे स्याहू की माता के पास ले जाती है।
स्याहू की माता जब साहूकार की छोटी बहू की परोपकार और सेवाभाव की बातें सुनती है तो प्रसन्न होती है। फिर उसे सात संतान की माता होने का आशीर्वाद देती है। आशीर्वाद के प्रभाव से साहूकार की छोटी बहू को सात बेटे होते हैं, जिससे उसकी सात बहुएं होती हैं। उसका परिवार बड़ा और भरापूरा होता है। वह सुखी जीवन व्यतीत करती है।अहोई माता की पूजा करने बाद अहोई अष्टमी व्रत कथा अवश्य सुनना चाहिए।


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