धर्म-अध्यात्म

जानिए गजानन संकष्टी चतुर्थी से जुड़ी पौराणिक कथा

Tara Tandi
15 July 2022 12:03 PM GMT
जानिए गजानन संकष्टी चतुर्थी से जुड़ी पौराणिक कथा
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सावन माह की कृष्ण चतुर्थी तिथि के दिन गजानन संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया जाता है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सावन माह की कृष्ण चतुर्थी तिथि के दिन गजानन संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया जाता है. यह दिन भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र गणेश भगवान (Lord Ganesh Pujan) को समर्पित है. इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने घर की सुख-सम्पत्ति और खुशियों के व्रत करती हैं. मान्यता है कि यह व्रत करने से जातक के सभी कष्ट दूर होते हैं.

कब है गजानन संकष्टी चतुर्थी 2022
गजानन संकष्टी चतुर्थी तिथि 16 जुलाई, शनिवार को दोपहर 1 बजकर 27 मिनट पर शुरू होगी और 17 जुलाई, रविवार को सुबह 10 बजकर 49 मिनट तक रहेगी. गजानन संकष्टी चतुर्थी व्रत 16 जुलाई को रखा जाएगा. बिना कथा पढ़े यह व्रत पूरा नहीं होता.
गजानन संकष्टी चतुर्थी से जुड़ी पौराणिक कथा
गजानन संकष्टी चतुर्थी से संबंधति पौराणिक कथा प्रचलित है. इस कथा के अनुसार प्राचीन काल में किसी शहर में एक साहूकार और उसकी पत्नी रहते थे. साहूकार दम्पत्ति को ईश्वर में आस्था नहीं थी और वह निःसंतान थे. एक दिन साहूकार की पत्नी अपने पड़ोसी के घर गयी. उस समय पड़ोसी की पत्नी संकट चौथ की कथा कह रही थी. तब साहूकार की पत्नी ने उसे संकष्टी चतुर्थी के बारे में बताया. उसने कहा संकष्टी चतुर्थी के व्रत से ईश्वर सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. तब साहूकार की पत्नी ने भी संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया तथा सवा सेर तिलकुट चढ़ाया. इसके बाद साहूकार की पत्नी गर्भवती हुई और उसे पुत्र पैदा हुआ.
साहूकार का बेटा बड़ा हुआ तो उसने ईश्वर से कहा कि मेरे बेटे का विवाह तय हो जाए तो व्रत रखेगी और प्रसाद चढ़ाएगी. ईश्वर की कृपा से साहूकार के बेटे का विवाह तय हो गया लेकिन साहूकार की मां व्रत पूरा नहीं कर सकी. इससे भगवान नाराज हुए और उन्होंने शादी के समय दूल्हे को एक पीपल के पेड़ से बांध दिया. उसके बाद उस पीपल के पेड़ के पास वह लड़की गुजरी जिसकी शादी नहीं हो पायी थी. तब पीपल के पेड़ से आवाज ए अर्धब्याही! यह बात लड़की ने अपनी मां से कहा. मां पीपल के पेड़ के पास आया और पूछा तो लड़के ने सारी कहानी बताई. तब लड़की की मां साहूकारनी के पास गयी और सब बात बताई. तब साहूकारनी ने भगवान से क्षमा मांगी और बेटा मिल जाने के बाद व्रत करने और प्रसाद चढ़ाने के लिए ईश्वर प्रार्थना की. इसके कुछ दिनों बाद साहूकारनी का बेटा उसे मिल गया और उसकी शादी हो गयी तभी से सभी गांव वाले संकष्टी चतुर्थी की व्रत करने लगे.
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