धर्म-अध्यात्म

जानिए माघ पूर्णिमा की पौराण‍िक कहानी और व्रत का महत्व

Tara Tandi
16 Feb 2022 4:37 AM GMT
जानिए माघ पूर्णिमा की पौराण‍िक कहानी और व्रत का महत्व
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हिंदू शास्त्र में माघी पूर्णिमा का एक खास महत्व होता है। इस दिन भगवान श्री सत्यनारायण की विशेष पूजा अर्चना की जाती है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदू शास्त्र में माघी पूर्णिमा का एक खास महत्व होता है। इस दिन भगवान श्री सत्यनारायण की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। इस साल माघी पूर्णिमा का व्रत 16 फरवरी को रखा जाएगा। माघी पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। माघी पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ माता लक्ष्मी और चंद्रमा देवता की पूजा अर्चना करना बेहद शुभ माना जाता हैं। माघी पूर्णिमा के दिन दान करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। यदि आप माघी पूर्णिमा का व्रत करने वाले है, तो यहां आप सत्यनारायण को प्रसन्न करने वाली उत्तम कथा हिंदी में देखकर शुद्ध-शुद्ध पढ़ सकते है।

Magh Purnima 2022 Vrat Katha, माघी पूर्णिमा की पौराण‍िक कहानी

पौराणिक कथा के अनुसार कांतिका नगर में धनेश्वर नाम का एक ब्राह्मण रहता था। ब्राह्मण और भिक्षा मांग कर अपना जीवन निर्वाह करता था। ब्राह्मण की पत्नी को कोई संतान नहीं थी। एक दिन उसकी पत्नी भिक्षा मांगने के लिए नगर में गई। लेकिन नगर वासियों ने बांझ कह कर उसे भिक्षा नहीं दिया। उसी समय किसी ने उसे 16 दिन तक मां काली की पूजा करने की सलाह दी। यह सुनकर ब्राह्मणी ने भक्ति पूर्वक मां काली की पूजा आराधना करने लगी।

16 दिन बाद मां काली प्रसन्न होकर प्रकट हुई और उन्होंने ब्राह्मणी को गर्भवती होने का वरदान दिया और अपने सामर्थ के अनुसार प्रत्येक पूर्णिमा को कम से कम 32 दीपक जलाने को कहा। एक दिन ब्राह्मण ने अपनी पत्नी को पूजा के लिए आम के पेड़ से कच्चा फल तोड़ कर दिया। तब उसकी पत्नी ने उस फल को लेकर मां काली की पूजा की।
माता के कहे अनुसार वह प्रत्येक पूर्णिमा को मां काली प्रतिमा के सामने दीपक जलाती रही। माता मां काली की कृपा से उसके घर में एक सुंदर पुत्र ने जन्म लिया। उसने अपने पुत्र का नाम देवदास रखा। जब देवदास बड़ा हो गया, तो वह अपने मामा के साथ पढ़ने के लिए काशी चला गया। काफी में देवदास के साथ ऐसी घटना घटी जिसके कारण देवदास का विवाह धोखे से हो गया।
चुकि देवदास की अल्पायु थी, इसलिए विवाह के कुछ दिन बाद ही काल उसका प्राण लेने के लिए आ गए। लेकिन ब्राम्हण दंपति ने पूर्णिमा का व्रत रखा था, इस प्रभाव से काल देवदास का प्राण नहीं ले पाएं। तभी से पूर्णिमा के दिन व्रत करने की प्रथा शुरू हो गई। ऐसी मान्यता है, कि पूर्णिमा का व्रत सभी मनोकामना को पूर्ण करने के साथ-साथ जीवन के संकटों को दूर करता हैं।
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