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- भगवान सूर्य देव कैसे...
हिंदू धर्म में सूरज को देवता का रूप माना जाता है. भगवान सूर्य देव की वजह से ही पृथ्वी प्रकाशवान है. मान्यता है कि सूर्य देव की नियमित पूजा करने से तेज और सकारात्मक शक्ति प्राप्त होती है. ज्योतिषियों के अनुसार, नवग्रहों में से सूर्य को राजा का पद प्राप्त है. विज्ञान में भी बताया जाता है कि बिना सूर्य के पृथ्वी पर जीवन असंभव है, इसलिए वेदों में इसे जगत की आत्मा भी कहा जाता है. लेकिन, भगवान सूर्य देव की उत्पत्ति कैसे हुई, यह सवाल सबके मन में आता है. पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं कि भगवान सूर्य देव के जन्म को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. आइए जानते हैं सूर्य देव के जन्म से जुड़ी कथाएं.
इस तरह हुआ सूर्य देव का जन्म
पौराणिक कथा के अनुसार, ब्रह्मा जी के पुत्र मरीचि और मरीचि के पुत्र महर्षि कश्यप का विवाह प्रजापति दक्ष की कन्या दीति और अदिति से हुआ था. अदिति इस बात से दुखी थी कि दैत्य और देवताओं में आपसी लड़ाई होती रहती थी. तब अदिति ने सूर्य देव की उपासना की. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने पुत्र के रूप में जन्म लेने का वर दिया. कुछ समय बाद अदिति को गर्भधारण हुआ. जिसके बाद भी उन्होंने कठोर उपवास नहीं छोड़ा.
महर्षि कश्यप इस बात से चिंतित रहने लगे कि इससे अदिति का स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ेगा. महर्षि कश्यप ने अदिति को समझाया तब उन्होंने कहा कि संतान को कुछ नहीं होगा, क्योंकि ये स्वयं सूर्य स्वरूप हैं. कुछ समय पश्चात तेजस्वी बालक ने जन्म लिया, जिन्होंने देवताओं की रक्षा की और असुरों का संहार किया. सूर्य देव को आदित्य भी कहा गया, क्योंकि उन्होंने अदिति के गर्भ से जन्म लिया.
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ऐसा भी कहा जाता है कि अदिति ने हिरण्यमय अंड को जन्म दिया था, जिनका नाम मार्तंड पड़ा. इस तरह सूर्य देव की उत्पत्ति हुई थी. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रतिदिन प्रातःकाल सूर्यदेव की उपासना करने और जल अर्पित करने से जातकों पर उनकी कृपा बनी रहती है