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सनातन धर्म में प्राचीन काल से ही दैहिक,दैविक एवं भौतिक कष्टों के निवारण के लिए देवी-देवताओं की अलग-अलग रूपों में पूजा करने का विधान अनेक धर्मशास्त्रों में बताया गया है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सनातन धर्म में प्राचीन काल से ही दैहिक,दैविक एवं भौतिक कष्टों के निवारण के लिए देवी-देवताओं की अलग-अलग रूपों में पूजा करने का विधान अनेक धर्मशास्त्रों में बताया गया है। अर्थात देवी-देवता हर प्रकार के कष्टों से सदैव हमारी रक्षा करते हैं। ऐसा ही एक रूप है मां पार्वती स्वरूपा मां शीतला देवी का जिनकी उपासना अनेक संक्रामक रोगों से हमें रोग मुक्त करती है। मां शीतला देवी की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को की जाती है। इस वर्ष यह पर्व 25 मार्च ,गुरूवार को मनाया जाएगा। प्रकृति के अनुसार शरीर निरोगी हो,इसलिए भी शीतला अष्टमी की पूजा-व्रत करना चाहिए।
पूजा का महत्व
भगवती शीतला की पूजा-अर्चना का विधान भी अनोखा होता है। शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व उन्हें भोग लगाने के लिए विभिन्न प्रकार के पकवान तैयार किए जाते हैं।अष्टमी के दिन बासी पकवान ही देवी को नैवेद्ध के रूप में समर्पित किए जाते हैं। लोकमान्यता के अनुसार आज भी अष्टमी के दिन कई घरों में चूल्हा नहीं जलाया जाता है और सभी भक्त ख़ुशी-ख़ुशी प्रसाद के रूप में बासी भोजन का ही आनंद लेते हैं। इसके पीछे तर्क यह है कि इस समय से ही बसंत की विदाई होती है और ग्रीष्म का आगमन होता है,इसलिए अब यहाँ से आगे हमें बासी भोजन से परहेज करना चाहिए।
शीतला माता के पूजन के बाद उस जल से आँखें धोई जाती हैं। यह परंपरा गर्मियों में आँखों का ध्यान रखने की हिदायत का संकेत है। माता का पूजन करने के बाद हल्दी का तिलक लगाया जाता है, घरों के मुख्यद्वार पर सुख-शांति एवं मंगल कामना हेतु हल्दी के स्वास्तिक बनाए जाते हैं। हल्दी का पीला रंग मन को प्रसन्नता देकर सकारात्मकता को बढ़ाता है, भवन के वास्तु दोषों का निवारण होता है।
मां की उपासना मंत्र
स्कंद पुराण में वर्णित माँ का यह पौराणिक मंत्र 'ॐ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः' भी प्राणियों को सभी संकटों से मुक्ति दिलाकर समाज में मान सम्मान पद एवं गरिमा की वृद्धि कराता है। जो भी भक्त शीतला माँ की भक्तिभाव से आराधना करते हैं माँ उन पर अनुग्रह करती हुई उनके घर-परिवार की सभी विपत्तिओं से रक्षा करती हैं। माँ का ध्यान करते हुए शास्त्र कहते हैं कि, 'वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम् || अर्थात- मैं गर्दभ पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में झाडू तथा कलश धारण करने वाली,सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की वंदना करता हूं।
इस वंदना मंत्र से यह पूर्णत: स्पष्ट हो जाता है कि ये स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं।ऋषि-मुनि-योगी भी इनका स्तवन करते हुए कहते हैं कि ''शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता।शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः अर्थात- हे माँ शीतला ! आप ही इस संसार की आदि माता हैं, आप ही पिता हैं और आप ही इस चराचर जगत को धारण करतीं हैं अतः आप को बारम्बार नमस्कार है।
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