धर्म-अध्यात्म

जानिए इन सात फेरों का महत्व, जब भगवान राम सीता भी हो जाते है इनसे प्रसन्न

Tara Tandi
2 Jan 2021 7:47 AM GMT
जानिए इन सात फेरों का महत्व, जब भगवान राम सीता भी हो जाते है इनसे प्रसन्न
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सनातन धर्म में 16 संस्कारों को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है.

जनता से रिश्ता बेवङेस्क| सनातन धर्म में 16 संस्कारों को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है.सनातन धर्म में 16 संस्कारों को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है.पाणिग्रहण संस्कार यानी विवाह संस्कार को भी इन 16 संस्कारों में से एक माना जाता है. वैदिक संस्कृति में इन 16 संस्कारों के बगैर इंसान का जीवन सफल नहीं माना जाता. विवाह शब्द में 'वि' का मतलब विशेष से है और 'वाह' का अर्थ वहन करना है. यानी उत्तरदायित्व को विशेष रूप से वहन करना ही विवाह होता है. हिंदू शास्त्रों में इसे पति पत्नी का जन्म जन्मांतर का संबन्ध माना गया है. हिंदू विवाह संस्कार सात फेरों के बगैर कभी नहीं होता, सरल शब्दों में यहां जानिए उन फेरों का सही अर्थ और महत्व.

पहला वचनः . तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या, वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी.

धार्मिक अनुष्ठानों में कोई भी कार्य तभी पूर्ण होता है जब पति और पत्नी साथ में उस कार्य को करते हैं. भगवान राम ने भी अश्वमेध यज्ञ के दौरान सीता माता की अनुपस्थिति में उनकी एक विशाल प्रतिमा को साथ रखा था. इस वचन में कन्या अपने वर से कहती है कि आप हमेशा किसी भी तीर्थ यात्रा या धार्मिक कार्य में मुझे अपने बायीं तरफ स्थान देंगे.

विवाह संस्कार

दूसरा वचन. पुज्यौ यथा स्वौ पितरौ ममापि तथेशभक्तो निजकर्म कुर्या, वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं द्वितीयम.

एक स्त्री में हालातों को काफी दूर तक देखने की क्षमता होती है. इस वचन के जरिए कन्या अपने भावी पति से ये वचन मांगती है कि आप अपने माता पिता की तरह ही मेरे माता पिता का भी सम्मान करेंगे. ये वचन दोनों परिवारों के बीच आपसी सम्मान और मधुर संबन्ध बनाए रखने के लिए पत्नी की दूरदर्शिता का बेहतर उदाहरण है.

तीसरा वचन : जीवनम अवस्थात्रये मम पालनां कुर्यात, वामांगंयामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं तृ्तीयं.

तीसरे वचन में कन्या कहती है कि जीवन की किसी भी अवस्था में यानी युवावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था में आप मेरा ध्यान रखेंगे, मेरा पालन करते रहेंगे तो मैं आपके वामांग में आने को तैयार हूं.

हिंदू विवाह संस्कार सात फेरों के बगैर कभी नहीं होता

चौथा वचन : कुटुम्बसंपालनसर्वकार्य कर्तु प्रतिज्ञां यदि कातं कुर्या, वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं चतुर्थं.

चौथे वचन में कन्या होने वाले पति को उसकी जिम्मेदारियों का अहसास कराते हुए आत्मनिर्भर बनने के लिए कहती है. इस वचन के माध्यम से वो कहती है कि विवाह बंधन में बंधने के बाद आप घर परिवार की जिम्मेदारियों से बंध जाएंगे. परिवार की जरूरतों को पूरा करने का उत्तरदायित्व अब आप पर होगा.

पांचवा वचन : स्वसद्यकार्ये व्यवहारकर्मण्ये व्यये मामापि मन्त्रयेथा, वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वचः पंचमत्र कन्या.

इस वचन के जरिए कन्या वर से कहती है विवाह के बाद घर के कार्यों, लेन देन या कोई अन्य खर्च करने से पहले आप एक बार मुझसे इस विषय में बात जरूर करेंगे. ये वचन भविष्य में पत्नी के अधिकारों को सुनिश्चित करता है.

हिंदू विवाह संस्कार

छठा वचन : न मेपमानमं सविधे सखीनां द्यूतं न वा दुर्व्यसनं भंजश्चेत, वामाम्गमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं च षष्ठम.

छठे वचन में पत्नी कहती है कि आप मेरी सखियों या अन्य लोगों के बीच मुझे अपमानित नहीं करेंगे. साथ ही जुआ वगैरह बुरे कामों से खुद को बचाकर रखेंगे तो ही मैं आपके वामांग में आने को तैयार हूं.

सातवां वचन : परस्त्रियं मातृसमां समीक्ष्य स्नेहं सदा चेन्मयि कान्त कुर्या. वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वचः सप्तममत्र कन्या.

आखिरी वचन के जरिए कन्या वर से रिश्ते के प्रति ईमानदारी बरतने का वचन मांगती है और कहती है कि आप भविष्य में मेरे और अपने बीच किसी अन्य को भागीदार नहीं बनाएंगे. परायी स्त्री को माता की तरह समझेंगे.

इस तरह हिंदू धर्म में विवाह के सात वचनों के माध्यम से स्त्री के लिए मान, सम्मान, और अधिकारों को सुनिश्चित किया गया है. जो आज के परिवेश में को देखते हुए भी काफी जरूरी है.

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