धर्म-अध्यात्म

जानिए सावन मास की विनायक चतुर्थी का महात्म्य, मुहूर्त और पूजा विधि

Tara Tandi
24 July 2022 4:53 AM GMT
जानिए सावन मास की विनायक चतुर्थी का महात्म्य, मुहूर्त और पूजा विधि
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सावन माह की शुक्लपक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सावन माह की शुक्लपक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार इस दिन विघ्नहर्ता भगवान श्रीगणेश जी का विधि-विधान से व्रत एवं पूजा किया जाता है. हिंदू धर्म शास्त्रों में सावन माह की विनायक चतुर्थी का विशेष महत्व होता है. मान्यतानुसार विनायक चतुर्थी को प्रथम पूज्य गणेश जी का व्रत एवं पूजा करने से जातक के सारे कष्ट एवं पाप मिट जाते हैं, तथा जीवन में आने वाली सारी बाधाएं दूर हो जाती हैं, आय के स्त्रोत खुल जाते हैं. जीवन में खुशियों के साथ समृद्धि आती है. इस वर्ष सावन माह की विनायक चतुर्थी 1 अगस्त 2022 को पड़ रही है.

विनायक चतुर्थी का महात्म्य!
इस बार विनायक चतुर्थी पर दो विशेष योगों का निर्माण जहां इस पूरे दिन को अत्यंत शुभ एवं लाभकारी बना रहा है, वहीं इस सावन का तीसरा सोमवार होने के कारण इस बार का विनायक चतुर्थी का महत्व कई गुणा बढ़ जायेगा. सावन माह में शिव परिवार की पूजा करने से जीवन सुखमय और रोग मुक्त रहता है. हर शुभ कार्य में सफलता की संभावनाएं ज्यादा होती हैं.
सावन विनायक चतुर्थी व्रत (01 अगस्त 2022, सोमवार) का शुभ मुहूर्त!
सावन शुक्लपक्ष चतुर्थी प्रारंभः 04.18 A.M. (01 अगस्त 2022, सोमवार) से
सावन शुक्लपक्ष चतुर्थी समाप्तः 05.13 A.M. (02 अगस्त 2022, मंगलवार) तक
उदयातिथि के अनुसार सावन विनायक चतुर्थी व्रत 01 अगस्त, 2022 सोमवार को रखा जाएगा.
श्रीगणेश पूजा का शुभ मुहूर्त!
पूजा का शुभ मुहूर्त 11.06 A.M से 01.48 PM बजे तक
इन योगों में होगी विनायक चतुर्थी व्रत-पूजा!
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सावन विनायक चतुर्थी के दिन दो विशेष योगों का निर्माण हो रहा है. पहला है रवि योग, जो सुबह 05.42 बजे शुरू होकर शाम 04.06 बजे तक रहेगा. जबकि इसी दिन शाम 07.04 बजे शिव योग भी लग रहा है. गणेश चतुर्थी के दिन रवि योग एवं शिव योग मांगलिक कार्यों के लिए बेहद शुभ माने जाते हैं. जबकि रवि योग में किये गये किसी भी प्रकार के कार्य में सफलता प्राप्त होती है. क्योंकि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार रवि योग को सूर्य देव प्रभाव होता है. कहने का आशय यह कि इस दिन आप किसी भी प्रकार के नये उद्योग नया जॉब ज्वाइन करते हैं तो सफलता अवश्यंभावी है.
व्रत एवं पूजा के विधान!
विनायक चतुर्थी की प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल रंग का वस्त्र धारण करें. सूर्य भगवान को तांबे के लोटे में जल के साथ लाल पुष्प एवं अक्षत डालकर अर्घ्य दें. किसी करीब गणेश जी के मंदिर में धूप-दीप प्रज्जवलित करें. दूर्वा, जटा वाला नारियल, लाल पुष्प, पुष्प का हार, अक्षत अर्पित करें. भोग के लिए मोदक चढ़ाएं. इस दरम्यान निम्न मंत्र का 27 बार जाप करें.
'ॐ गं गणपतये नमः'
सूर्यास्त के पश्चात गणेश पूजन करें. पूजा में पीतल, तांबा या मिट्टी की प्रतिमा स्थापित करें. हाथों में पुष्प एवं सिक्का लेकर संकल्प लें. अपनी क्षमता अनुरूप मोदक चढ़ाएं. अंत में गणेश जी की आरती उतारने के पश्चात प्रसाद का वितरण करें. इस दिन चंद्रमा का दर्शन अथवा अर्घ्य देना प्रतिबंधित माना जाता है. अगले दिन सुबह स्नान के पश्चात पारण कर लें. लेकिन पारण से पूर्व किसी ब्राह्मण को अन्न दान अवश्य करें.
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