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सनातन शास्त्र में मां की महिमा और गुणगान का निहित है। उनकी लीला अपरंपार है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | सनातन शास्त्र में मां की महिमा और गुणगान का निहित है। उनकी लीला अपरंपार है। सभी भक्तों पर मां की दया और दृष्टि एक समान बनी रहती है। धर्म शास्त्र में निहित है कि जब कभी भक्तों पर कोई मुसीबत आन पड़ती है, तो मां अपने भक्तों को संकटों से उबारती हैं। नवरात्रि के नौ दिनों में मां की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि जो भक्ति सच्चे दिल से मां के दरबार में हाजिरी लगाता है। उसकी सभी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं। देश में दर्जनों शक्तिपीठ हैं। इन शक्तिपीठों में मां की पूजा-उपासना की जाती है। इनमें एक शक्तिपीठ नैना देवी है। इस शक्तिपीठ के बारे में मान्यता है कि आदिशक्ति मां सती के नेत्र गिरे थे। आइए, इस शक्तिपीठ मंदिर के बारे में सबकुछ जानते हैं-
क्या है कथा
लोहड़ी की कथा भगवान शिव और आदिशक्ति मां सती से जुड़ी है। धार्मिक मान्यता है कि दैविक काल में मां सती के अग्निकुंड में प्राण की आहुति देने के पश्चात मनाई गई। पौराणिक कथा है कि मां सती और भगवान शिव के विवाह से प्रजापति दक्ष प्रसन्न नहीं थे। कालांतर में एक बार प्रजापति दक्ष ने महायज्ञ का आयोजन किया। इस आयोजन में प्रजापति दक्ष ने भगवान शिव और पुत्री सती को आमंत्रित नहीं किया। उस समय मां सती ने पिता के यज्ञ में जाने की इच्छा भगवान शिव से जताई। साथ ही अनुमति भी मांगी। तब भगवान शिव ने मां सती से कहा-बिना आमंत्रण के किसी घर पर जाना उचित नहीं होता है। ऐसी परिस्थिति में सम्मान की जगह अपमान होता है। इसके लिए आप अपने पिता के घर न जाए। हालांकि, मां सती के न मानने पर भगवान शिव ने उन्हें जाने की अनुमति दे दी। जब मां सती अपने पिता के यज्ञ में शामिल होने पहुंची, तो वहां भगवान शिव के प्रति कटु और अपमानजनक शब्द सुनकर मां सती बेहद कुंठित हुई। उस समय मां सती पिता द्वारा आयोजित यज्ञ कुंड में समा गईं। इसके बाद शिव जी क्रोधित हो उठे और माता सती को कंधे पर रख तांडव करने लगे। इससे तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। उसी समय भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से मां सती के शरीर को 51 टुकड़ों में बांट दिया। ये सभी अंग धरती पर गिरे। ये सभी स्थल शक्तिपीठ कहलाया।
नैना देवी मंदिर
हिमाचल प्रदेश अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। यह देव स्थल भी है। हिमाचल प्रदेश स्थित बिलासपुर जिले में नैना देवी मंदिर अवस्थित है। समुद्रतल से इसकी ऊंचाई 11 सौ मीटर है। यह मंदिर राष्ट्रीय राजमार्ग 21 से जुड़ा है। अतः श्रद्धालु आसानी से सड़क मार्ग के जरिए नैना मंदिर पहुंच सकते हैं। साथ ही मंदिर परिसर तक पहुंचने के लिए लक्ष्मण झूले की भी व्यवस्था है। मंदिर परिसर में पीपल का वृक्ष है। इस वृक्ष के बारे में कहा जाता है कि इसकी आयु कई शताब्दी है। नैना मंदिर के गर्भ गृह में मां नैना, मां काली और भगवान गणेश की प्रतिमाएं स्थापित हैं। वहीं, मुख द्वार पर हनुमान जी की प्रतिमा अवस्थित है। कुछ दूर आगे मां की सवारी सिंह की दो प्रतिमाएं हैं। मंदिर परिसर में एक पवित्र जलाशय है। साथ ही नैना देवी गुफा भी है।
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