धर्म-अध्यात्म

जानें डूबते सूर्य देव को अर्घ्य देने का महत्व और सही समय

Kajal Dubey
7 April 2022 9:59 AM GMT
जानें डूबते सूर्य देव को अर्घ्य देने का महत्व और सही समय
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चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की छठी तिथि को चैती छठ के नाम से जाना जाता है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की छठी तिथि को चैती छठ के नाम से जाना जाता है. यह चार दिवसीय पर्व का आज तीसरा दिन है.

छठ व्रत के नियम
छठ पूजा के चारों दिन व्रती जमीन पर चटाई पर सोएं. व्रती और घर के सभी सदस्य भी छठ पूजा के दौरान प्याज, लहसुन और मांस-मछली ना खाएं.व्रती स्त्रियां छठ पर्व के चारों दिन नए कपड़े पहनें. महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनें. पूजा के लिए बांस से बने सूप और टोकरी का इस्तेमाल करें. छठ पूजा में गुड़ और गेंहू के आटे के ठेकुआ, फलों में केला और गन्ना ध्यान से रखें.
छठ पूजा में घाट पर जानें का है महत्व
छठ को महापर्व की संज्ञा दी जाती है. कहते हैं कि यह आस्था और श्रद्धा का सबसे खास त्योहार है. इसलिए इसके प्रति लोगों में बहुत अधिक विश्वास है. दुनियाभर में प्रवासी बिहारी अपने-अपने क्षेत्रों के नजदीकी घाटों पर जाकर भावों सहित छठ पूजा का त्योहार मनाते हैं.
संध्या अर्घ्य का समय
डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का समय- 7 अप्रैल को शाम 5 बजकर 30 मिनट में सूर्यास्त होगा
उगते सूर्य को अर्घ्य देने का समय- 8 अप्रैल को सुबह 6 बजकर 40 मिनट में सूर्योदय
भक्त क्यों रखते हैं छठ का व्रत
बताया जाता है कि छठ व्रत संतान की रक्षा और उनकी जिंदगी में तरक्की और खुशहाली लाने के लिए किया जाता है. विद्वानों का मानना है कि सच्चे मन‌ से छठ व्रत रखने से इस व्रत का सैकड़ों यज्ञ करने से भी ज्यादा बल प्राप्त होता है. कई लोग केवल संतान ही नहीं बल्कि परिवार में सुख-समृद्धि लाने के लिए भी यह व्रत रखते हैं.
सुख-समृद्धि और छठ व्रत
जानकारों का मानना है कि श्रद्धा से छठ पूजा का व्रत रखने से इस व्रत का सैकड़ों गुना यज्ञों का फल प्राप्त होता है. कई लोग केवल संतान ही नहीं बल्कि घर-परिवार में सुख-समृद्धि और धन लाने के लिए भी यह व्रत रखते हैं.
घाट पर जाने का महत्व
छठ को महापर्व की संज्ञा दी जाती है. कहते हैं कि यह आस्था और श्रद्धा का सबसे खास त्योहार है. इसलिए इसके प्रति लोगों में बहुत अधिक विश्वास है. दुनियाभर में प्रवासी बिहारी अपने-अपने क्षेत्रों के नजदीकी घाटों पर जाकर भावों सहित छठ पूजा का त्योहार मनाते हैं.
व्रत के नियम…
छठ पूजा के चारों दिन व्रती जमीन पर चटाई पर सोएं. व्रती और घर के सभी सदस्य भी छठ पूजा के दौरान प्याज, लहसुन और मांस-मछली ना खाएं.व्रती स्त्रियां छठ पर्व के चारों दिन नए कपड़े पहनें. महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनें. पूजा के लिए बांस से बने सूप और टोकरी का इस्तेमाल करें. छठ पूजा में गुड़ और गेंहू के आटे के ठेकुआ, फलों में केला और गन्ना ध्यान से रखें.
शुभ मुहूर्त में अर्घ्य का महत्व
ऐसी मान्यता है कि छठ पूजा का अत्यंत कठिन निर्जला व्रत रखने के बाद शुभ मुहूर्त में अर्घ्य अर्पित करना चाहिए. बताया जाता है कि शुभ मुहूर्त में अर्घ्य देने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है.
सुख-समृद्धि के लिए छठ
जानकारों का मानना है कि श्रद्धा से छठ पूजा का व्रत रखने से इस व्रत का सैकड़ों गुना यज्ञों का फल प्राप्त होता है. कई लोग केवल संतान ही नहीं बल्कि घर-परिवार में सुख-समृद्धि और धन लाने के लिए भी यह व्रत रखते हैं.
महाभारत में मिलता है उल्लेख
महाभारत में भी छठ पूजा का उल्लेख किया गया है. पांडवों की मां कुंती को विवाह से पूर्व सूर्य देव की उपासना कर आशीर्वाद स्वरुप पुत्र की प्राप्ति हुई जिनका नाम था कर्ण. पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भी उनके कष्ट दूर करने हेतु छठ पूजा की थी.l
सूर्यदेव की बहन हैं छठ देवी
मान्यता है कि छठ देवी सूर्यदेव की बहन है. इसलिए छठ पर्व पर छठ देवी को प्रसन्न करने हेतु सूर्य देव को प्रसन्न किया जाता है. गंगा-यमुना या किसी भी नदी, सरोवर के तट पर सूर्यदेव की आराधना की जाती है.
छठ व्रत सूर्य देव, उषा, प्रकृति, जल और वायु को समर्पित
छठ पूजा का महत्व बहुत अधिक‌ माना जाता है। छठ व्रत सूर्य देव, उषा, प्रकृति, जल और वायु को समर्पित हैं. ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को श्रद्धा और विश्वास से करने से नि:संतान स्त्रियों को संतान सुख की प्राप्ति होती हैं.
मन्नतों का पर्व है छठ पूजा
छठ पर्व प्रकृति का त्योहार तो है ही साथ ही इसे मन्नतों का भी पर्व कहा जाता है. छठ व्रत रखने वाली महिला को परवैतिन कहा जाता है. इस दौरान वह 36 घंटे का कठोर निर्जल व्रत रखती हैं. जब तक पूजा संपन्न नहीं हो जाता वह कुछ भी नहीं खाती-पीती हैं. छठी माई से कई मन्नतें भी करतीं हैं.
सामग्री लिस्ट
प्रसाद रखने के लिए बांस की दो तीन बड़ी टोकरी, बांस या पीतल के बने तीन सूप, लोटा, थाली, दूध और जल के लिए ग्लास, नए वस्त्र साड़ी-कुर्ता पजामा, चावल, लाल सिंदूर, धूप और बड़ा दीपक, पानी वाला नारियल, गन्ना जिसमें पत्ता लगा हो, सुथनी और शकरकंदी, हल्दी और अदरक का पौधा हरा हो तो अच्छा, नाशपाती और बड़ा वाला मीठा नींबू, जिसे टाब भी कहते हैं, शहद की की डिब्बी, पान और साबुत सुपारी, कैराव, कपूर, कुमकुम, चन्दन, मिठाई.
खरना का महत्व
चैती छठ के दूसरे दिन को खरना कहते हैं इसे लोहंडा के नाम से भी जाना जाता है. इस, दिन सुबूह स्नान आदि के बाद सूर्य देव की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है. शाम को पूजा के लिए गुड़ की खीर और रोट बनाई जाती है. भोग को रसिया के नाम के जानते हैं. खरना का प्रसाद मिट्टी के चूल्हे में आम की लकड़ी जलाकर बनाया जाता है. साथ ही इसे मिट्ट या पीतल के ही बर्तनों में बनाते हैं. अगर आपके पास चूल्हा नहीं है, तो साफ गैस भी रख सकते हैं. भगवान सूर्य देव को भोग लगाने से पहले प्रसदा को केले के पत्ते पर रखा जाता है.
सप्तमी के दिन छठ का पारण
छठ का चौथा दिन यानी कि सप्तमी के दिन सुबह उगते सूरज को अर्घ्य देकर विधि-विधान से पूजा संपन्‍न की जाती है. इस दिन घाटों पर खास रौनक दिखती है और महिलाएं छठी माता के गीत गाती हैं. सूर्योदय के साथ ही सुबह का अर्घ दिया जाता है और इस तरह छठ पूजा का पारण यानी समापन होता है. इसके बाद ही घाटों पर प्रसाद दिया जाता है.
छठ पर्व का महत्व
कार्तिक माह में आने वाली छठ पर्व का महत्व अधिक होता है. खरना के दिन व्रती रात को पूजा के बाद गुड़ की खीर खाते हैं और 36 घंटे का निर्जला व्रत रखते हैं. इसका समापन चौथे दिन सूर्योदय के समय सूर्य को अर्घ्य देने के साथ समाप्त होता है. आइए जानें खरना का महत्व और शुभ मुहूर्त के बारे में.
सूर्य को अर्घ्य देने का समय
डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का समय- 7 अप्रैल को शाम 5 बजकर 30 मिनट में सूर्यास्त होगा
उगते सूर्य को अर्घ्य देने का समय- 8 अप्रैल को सुबह 6 बजकर 40 मिनट में सूर्योदय


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