धर्म-अध्यात्म

जानिए कालाष्टमी का महत्व और तिथि, पूजाविधि

Tara Tandi
23 Jan 2022 6:19 AM GMT
जानिए कालाष्टमी का महत्व और तिथि, पूजाविधि
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मान्यता है कि भगवान शिव की नगरी काशी की रक्षा वहां के कोतवाल बाबा काल भैरव ही करते हैं।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। Masik Kalashtami 2022: मान्यता है कि भगवान शिव की नगरी काशी की रक्षा वहां के कोतवाल बाबा काल भैरव ही करते हैं। मान्यता के अनुसार इस दिन व्रत करने से क्रूर ग्रहों का प्रभाव भी खत्म हो जाता है और ग्रह शुभ फल देना शुरू कर देते हैं।

Masik Kalashtami 2022: हिंदू पंचांग अनुसार कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी व्रत रखा जाता है। कालाष्टमी के दिन भगवान शिव के अवतार काल भैरव की आराधना की अति है। काल भैरव की पूजा करने से व्यक्ति को अकाल मृत्यु, मृत्यु के डर से मुक्ति, सुख, शांति और आरोग्य प्राप्त होता है। मान्यता है कि भगवान शिव की नगरी काशी की रक्षा वहां के कोतवाल बाबा काल भैरव ही करते हैं। मान्यता के अनुसार इस दिन व्रत करने से क्रूर ग्रहों का प्रभाव भी खत्म हो जाता है और ग्रह शुभ फल देना शुरू कर देते हैं।
कालाष्टमी व्रत का महत्व
कालाष्टमी का व्रत करने और काल भैरव की पूजा करने व्यक्ति को हर प्रकार के डर से मुक्ति मिलती है। उनकी कृपा से रोग-व्याधि दूर होते हैं। वह अपने भक्तों की संकटों से रक्षा करते हैं। उनकी पूजा करने से नकारात्मक शक्तियां पास नहीं आती हैं।
कालाष्टमी तिथिः
अष्टमी तिथि आरंभ: 25 जनवरी, मंगलवार, प्रातः 7:48 से
अष्टमी तिथि समाप्त: 26 जनवरी, बुधवार, प्रातः 6:25 तक
कालाष्टमी शुभ योग
कालाष्टमी पर द्विपुष्कर योग: प्रातः 7:13 से प्रातः 7:48 तक
कालाष्टमी पर रवि योग: प्रातः 7:13 से प्रातः10:55 तक
शुभ मुहूर्त: 25 जनवरी, मंगलवार, दोपहर 12:12 से दोपहर 12:55 तक
कालाष्टमी व्रत पूजा विधि
कालाष्टमी के दिन पूजा स्थान को गंगा जल से शुद्ध करें।
इसके उपरांत लकड़ी की चौकी पर भगवान शिव और माता पार्वती के साथ कालभैरव की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
इसके उपरांत जल चढ़ाने के बाद पुष्प, चंदन, रोली अर्पित करें।
इसके साथ नारियल, मिष्ठान, पान, मदिरा, गेरु आदि चीजें अर्पित करें।
इसके उपरांत काल भैरव के समक्ष चौमुखा दीपक जलाएं और धूप-दीप कर आरती करें।
इसके बाद शिव चालीसा और भैरव चालीसा या बटुक भैरव पंजर कवच का भी पाठ कर सकते हैं।
रात्रि के समय काल भैरव की सरसों के तेल, उड़द, दीपक, काले तिल आदि से पूजा-अर्चना कर रात्रि में जागरण करें।


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