धर्म-अध्यात्म

जानें पाक माह रमजान का इतिहास ,क्यों रखते हैं रोजा?

Kajal Dubey
31 March 2022 3:52 AM GMT
जानें पाक माह रमजान का इतिहास ,क्यों रखते हैं रोजा?
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इस्लाम में रमजान माह को पवित्र महीना मानते हैं. इस माह में लोग सभी प्रकार की बुराइयों से दूर रहते हैं

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। इस्लाम में रमजान माह को पवित्र महीना मानते हैं. इस माह में लोग सभी प्रकार की बुराइयों से दूर रहते हैं. पाक रमजान माह को अल्लाह से अपनी नजदीकियों को बढ़ाने का अवसर मानते हैं. इस माह में रोजा रखकर खुदा की इबादत की जाती है और अल्लाह अपने बंदों को रहमतें एवं बरकतें देते हैं. सूरज निकलने से लेकर सूरज के ढलने तक रोजा रखा जाता है. इस दौरान पानी तक नहीं पीते हैं. रोजा में अल्लाह अपने बंदों की कड़ी परीक्षा लेते हैं. इस साल रमजान का पवित्र म​हीना (Ramadan 2022 Date) 02 अप्रैल से शुरु हो सकता है और 03 अप्रैल से रोजा रखा जा सकता है. 02 अप्रैल की रात रमजान का चांद दिखाई देता है, तो अगले दिन से रोजा शुरु हो जाएगा. आइए जानते हैं पाक माह रमजान का इतिहास

रमजान माह क्यों है पवित्र
इस्लामिक मान्यता है कि इस माह में खुदा से मोहम्मद साहब को कुरान की आयतें मिली थीं. तब से इस्लामी कैलेंडर के 9वें माह रमजान को पवित्र मानते हैं. इसमें खुदा की इबादत के लिए रोजा रखते हैं. करीब 30 दिन तक रोजा रखा जाता है और अंतिम दिन ईद-उल-फितर मनाते हैं. रमजान माह के 30 दिन 3 अशरों यानी हिस्सों में बंटे हुए हैं. रमजान के तीन अशरे रहमत, बरकत और मगफिरत हैं.
रमजान के तीन अशरे
रमजान के पहले 10 दिन रहमत के होते हैं. इसमें खुदा की इबादत, नमाज और दान करते हैं. यह पहला अशरा होता है. रमजान का दूसरा अशरा भी 10 दिन का होता है. इसमें जाने-अनजाने में की गई गलतियों के लिए माफी मांगी जाती है. नेक बंदों को खुदा रहमत और बरकत देते हैं. रमजान के आखिरी 10 दिन तीसरा अशरा होता है, इसमें लोग खुदा से दुआ करते हैं कि उनको उनके किए पापों से मुक्ति मिले और मृत्यु के बाद उन्हें अल्लाह की पनाह मिले.
रमजान में रोजा
रमजान माह में रोजा रखने वाले बंदे सूरज निकलने से पूर्व भोजन, फल आदि खाते हैं. इसे सहरी कहते हैं. सहरी करने के बाद पूरे दिन भर कुछ भी खाना या पीना मना होता है. बढ़ती गर्मी रोजेदारों के लिए एक चुनौती होती है. ऐसे में खुदा अपने बंदों की परीक्षा लेते हैं. शाम के समय नमाज पढ़ी जाती है और सूरज ढलने के बाद इफ्तार किया जाता है.
रोजा रखने का मकसद स्वयं के अंदर झांकने का मौका होता है. वह अपनी बुराइयों को दूर करता है और एक नेक इंसान बनने के लिए इबादत करता है. नेक बंदों पर ही खुदा की रहमत और बरकत होती है.


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