धर्म-अध्यात्म

धर्म और अध्यात्म में क्या है अंतर जानिए इस मार्ग पर चलकर ईश्वरी ज्ञान और आनंद की प्राप्ति होती है

Neha Dani
10 July 2023 5:08 PM GMT
धर्म और अध्यात्म में क्या है अंतर जानिए इस मार्ग पर चलकर  ईश्वरी ज्ञान और आनंद की प्राप्ति होती है
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हमारे दार्शनिक ग्रंथों और वेदों में कहा गया है कि आत्मा और परमात्मा से संबंधित शाश्वत ज्ञान का अनुगमन करना ही अध्यात्म विद्या है। अध्यात्मिक होने का मतलब भौतिकता से परे जीवन का अनुभव करना है। कई बार हम धर्म और अध्यात्म को एक ही समझने लगते हैं, पर अध्यात्म धर्म से बिलकुल अलग है। ईश्वरीय आनंद की अनुभूति करने का मार्ग ही अध्यात्म है। अध्यात्म व्यक्ति को स्वयं के अस्तित्व के साथ जोड़ने और उसका सूक्ष्म विवेचन करने में समर्थ बनाता है। वास्तव में आध्यात्मिक होने का अर्थ है कि व्यक्ति अपने अनुभव के धरातल पर यह जानता है कि वह स्वयं अपने आनंद का स्रोत है। अध्यात्मिकता का संबंध हमारे आंतरिक जीवन से है।हमारा अधिकतर ज्ञान भौतिक है और उसी से हम परम आनंद की प्राप्ति की आकांक्षा करते हैं जो कि पूरी तरह व्यर्थ है। आज के वातावरण में मनुष्य भौतिकवाद के अनुसरण में व्यस्त है। भौतिकवाद केवल बाहरी आवरण को समृद्ध बना सकता है। इससे हम अपने भौतिक शरीर की जरूरतों को ही पूर्ण कर सकते हैं।
भौतिकवाद हमारे बाहरी शरीर को सुंदर बना सकता है, पर इससे आंतरिक आनंद और उल्लास की अपेक्षा करना हमारी अज्ञानता है। भौतिकवाद और विज्ञान हमें संपूर्ण विश्व की बाहरी यात्रा करवा सकता है, पर आंतरिक यात्रा तो केवल अध्यात्म के मार्ग पर चलकर ही हो सकती है।आध्यात्मिक जीवन एक ऐसी नाव है जो ईश्वरीय ज्ञान और आनंद से भरी हुई है। यह नाव जीवन के उत्थान और पतन रूपी झंझावातों में भी चलती रहती है। अध्यात्म मनुष्य को आंतरिक रूप से सशक्त बनाता है। लाभ-हानि, मान-अपमान, सुख-दुख, उत्थान-पतन सभी परिस्थितियों में आध्यात्मिक मार्ग का पथिक अविचल रूप से गतिमान रहता है। सांसारिक रुकावटें उसकी इस गति को बाधित ही नहीं कर सकतीं। सभी प्राणियों में उसी परम सत्ता के अंश को अनुभव करने की प्रेरणा अध्यात्म ही प्रदान करता है। अध्यात्म विश्व बंधुत्व का मार्ग है जहां मनुष्य की ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, आपसी भेदभाव पूरी तरह समाप्त हो जाते हैं। प्रत्येक प्राणी में उसी दिव्य तत्व की अनुभूति होने लगती है।अध्यात्म की इसी समदर्शी और समत्व की भावना को योगेश्वर श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया है कि जो मनुष्य सभी प्राणियों में स्थित आत्मा को अपने जैसा देखता है, ऐसा समदर्शी आध्यात्मिक मनुष्य सांसारिक वातावरण से अलग होकर सभी प्राणियों को ईश्वरमय समझने लगता है। ऐसी अवस्था में वह किसी का अहित करने का विचार अपने मन में नहीं ला सकता।
संपूर्ण विश्व के प्राणी उसके लिए बंधु बन जाते हैं। अध्यात्म मनुष्य को इसी समत्व की भावना की ओर ले जाता है। हमारी सारी दौड़, सारे प्रयास बाहर के भौतिक जीवन तक ही सीमित हैं। लेकिन अध्यात्म अपने भीतर जाने का मार्ग खोलता है।भारत माता को आजाद कराने के लिए इस राजा ने काट दिया था अपना हाथहमारा अधिकतर समय दूसरों के स्वभाव, व्यवहार, व्यक्तिगत जीवन को जानने में व्यतीत हो जाता है। अमूल्य धरोहर इस मानव जीवन को हम व्यर्थ की दौड़ धूप में, आपसी मनमुटाव और दूसरों की कमियों को जानने में व्यतीत कर देते हैं। अध्यात्म हमें सचेत करते हुए कहता है कि सबसे पहले स्वयं को जानो। सर्वप्रथम अपने व्यवहार, अपने भीतर का अवलोकन करो। बाहरी संसार के व्यक्तियों की आलोचनाएं, प्रशंसा से हमें कुछ भी प्राप्त नहीं होने वाला। अपने भीतर के अवलोकन से ही हम शाश्वत आनंद और शांति के भंडार को प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए आध्यात्मिक तत्वों को अपने जीवन में आत्मसात करके ही आनंद और शांति की अनुभूति की जा सकती है।
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