धर्म-अध्यात्म

जानिए 'बलि प्रतिपदा' की तिथि और पूजा विधि से जुड़ी जानकारी

Gulabi
5 Nov 2021 1:37 PM GMT
जानिए बलि प्रतिपदा की तिथि और पूजा विधि से जुड़ी जानकारी
x
‘बलि प्रतिपदा’ की तिथि और पूजा विधि से जुड़ी जानकारी

बलि प्रतिपदा, जिसे बलि पूजा के रूप में भी जाना जाता है, कार्तिक प्रतिपदा के पहले दिन मनाया जाता है, जो दिवाली के अगले दिन पड़ता है.


वो दिन गोवर्धन पूजा के साथ मेल खाता था, और जैसे भक्त भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं, वैसे ही लोग दानव राजा बलि का आशीर्वाद लेते हैं.
बलि पूजा राजा बलि की पृथ्वी पर वापसी का प्रतीक है, जिसे भगवान विष्णु के वामन अवतार द्वारा पाताल लोक भेजा गया था. इस वर्ष ये दिवस 6 नवंबर 2021 को मनाया जाएगा.

भारत के कई हिस्सों में, जैसे गुजरात और राजस्थान में, ये विक्रम संवत में क्षेत्रीय पारंपरिक नव वर्ष दिवस है और इसे बेस्टु वारस या वर्षा प्रतिपदा भी कहा जाता है.

बलि पूजा 2021: तिथि और शुभ समय

दिनांक: 5 नवंबर, शुक्रवार

प्रतिपदा तिथि प्रारंभ – 02:44 मध्य रात्रि 05 नवंबर, 2021

प्रतिपदा तिथि समाप्त – 05 नवंबर, 2021 को रात 11:14 बजे

बलि पूजा प्रात:काल मुहूर्त – 06:36 प्रात: से 08:47 प्रात:

बलि पूजा सयंकला मुहूर्त – 03:22 दोपहर से 05:33 सायं

बलि पूजा 2021: महापुरूष

हिंदू ग्रंथों के अनुसार, भगवान विष्णु के वामन (बौने) अवतार ने राक्षस राजा बलि को पाताललोक भेजा था. हालांकि, उनकी उदारता के कारण, भगवान विष्णु ने उन्हें भूलोक यानी पृथ्वी पर जाने के लिए तीन दिन की अनुमति दी.

वो पहली बार कार्तिक प्रतिपदा के पहले दिन पृथ्वी पर आया था. ऐसा माना जाता है कि राजा बलि तीन दिनों तक पृथ्वी पर रहते हैं और इन दिनों अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं.

बलि पूजा 2021: पूजा विधि

हिंदू मान्यता के अनुसार, इस दिन घर के केंद्र में राक्षस राजा बलि और उनकी पत्नी विंध्यवली की छवि बनाई जाती है. प्रतिमा को पांच अलग-अलग रंगों से बनाकर उस पर पूजा करनी चाहिए.

दक्षिणी भारत में ओणम के दौरान राजा बलि की पूजा की जाती है और ओणम की अवधारणा भी उत्तर भारत में बलि पूजा के समान ही है.

दिवाली पूजा से अगले ही दिन कार्तिक प्रतिपदा के दिन बाली प्रतिपदा का त्योहार मनाया जाता है.

वामन अवतार की कथा

देवताओं और दैत्यों में युद्ध हुआ और इस युद्ध में दैत्य पराजित होने लगे थे. पराजित दैत्य मृत और आहत दैत्यों को लेकर अस्तांचल चले जाते हैं और दूसरी ओर दैत्यराज बलि भगवान इंद्र के वज्र से मृत हो जाते हैं.

इसके बाद दैत्यगुरु शुक्राचार्य अपनी मृत संजीवनी विद्या से बलि और बाकी दैत्यों को भी जीवित और स्वस्थ कर देते हैं. राजा बलि के लिए शुक्राचार्य एक यज्ञ का आयोजन करते हैं और अग्नि से दिव्य रथ, बाण, अभेद्य कवच पाते हैं.

इससे असुरों की शक्ति में बढ़ोत्तरी होती है. इसके बाद इंद्र भगवान विष्णु के पास जाते हैं. भगवान विष्णु उनकी सहायता का आश्वासन देते हैं और वामन रूप में माता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होने का वचन देते हैं.

दैत्यराज बलि द्वारा पराभव के बाद ऋषि कश्यप के कहने पर माता अदिति पयोव्रत का अनुष्ठान करती हैं जो कि पुत्र प्राप्ति के लिए होता है.

इसके बाद भगवान विष्णु भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष के द्वादशी के दिन माता अदिति के गर्भ से प्रकट होते हैं और ब्रह्मचारी ब्राह्मण का रूप धारण करते हैं.

वामन रूप में भगवान विष्णु एक पग में ही स्वर्गादि उध्र्व लोकों को और दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लेते हैं. वामन के तीसरे पैर को रखने के लिए स्थान कहां से लाएं?

इस स्थिति में राजा बलि अपना सिर भगवान के आगे कर देते हैं और कहते हैं कि तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख दीजिए. वामन भगवान ठीक उसी तरह करते हैं और बलि को पाताल लोक में रहने का आदेश देते हैं.

बलि के द्वारा वचन का पालन करने पर भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न होते हैं और दैत्यराज बलि को वर मांगने को कहते हैं. इसके बदल ेमें बलि रात-दिन भगवान को अपने सामने रहने का वचन मांग लेता है.

भगवान विष्णु अपने वचन का पालन करते हुए पाताल लोक में राजा बलि का द्वारपाल बनना स्वीकार कर लेते हैं.

नोट- यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.
Next Story