धर्म-अध्यात्म

जानें मासिक कार्तिगाई दीपम का पूजा की तिथि और विधि

Ritisha Jaiswal
7 Feb 2022 4:31 PM GMT
जानें मासिक कार्तिगाई दीपम का पूजा की तिथि और विधि
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तमिल पंचांग के अनुसार, 9 फरवरी को मासिक कार्तिगाई दीपम है। यह पर्व साल के प्रत्येक महीने में मनाया जाता है

तमिल पंचांग के अनुसार, 9 फरवरी को मासिक कार्तिगाई दीपम है। यह पर्व साल के प्रत्येक महीने में मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिवजी की पूजा की जाती है। मासिक कार्तिगाई दीपम दक्षिण भारत में मनाया जाता है। खासकर, तमिल समुदाय के लोग इसे धूमधाम से मनाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि कार्तिगाई दीपम को भगवान शिव ने स्वंय को ज्योत रूप में बदल लिया था। अत: कार्तिगाई दीपम को ज्योत रूप में भगवान शिव की पूजा की जाती है। इस मौके पर शाम में दीपावली की तरह पंक्तिबद्ध तरीके में दीप जलाए जाते हैं। इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन से सभी कष्टों का अंत होता है। साथ ही जीवन में नवीन ऊर्जा का संचार होता है। आइए, पूजा की तिथि, शुभ मुहर्त और विधि जानते हैं-

कार्तिगाई दीपम महत्व
तमिल धार्मिक ग्रंथों के अनुसार-चिरकाल में एक बार भगवान ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया। उस समय विवाद के निपटारे के लिए भगवान शिव ने स्वयं को दिव्य ज्योत में बदल लिया था। कालांतर से इस पर्व को मनाने का विधान है।
कार्तिगाई दीपम पूजा का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, मासिक कार्तिगाई दीपम तिथि 9 फरवरी को 8 बजकर 30 मिनट पर शुरू होकर 10 फरवरी को 12 बजकर 23 मिनट पर समाप्त होगी। अत: साधक संध्याकाल में भगवान शिव की पूजा कर दीप जला सकते हैं। साथ ही दिन में किसी समय पूजा-पाठ कर सकते हैं।
पूजा विधि
इस दिन प्रातः काल शुभ मुहूर्त में उठें। इसके बाद स्नान-ध्यान से निवृत होकर व्रत संकल्प लें।तत्पश्चात, भगवान शिव जी की पूजा-उपासना सच्ची श्रद्धा और भक्ति से करें। साधक भगवान शिवजी की पूजा सफेद फूल, फल, धूप, दीप, अगरबत्ती, इत्र, शहद, भांग, धतूरा आदि चीजों से करें। साथ में शिव कवच का पाठ करें। अंत में आरती-अर्चना के पश्चात प्रार्थना कामना करें। शारीरिक क्षमता अनुसार, दिनभर उपवास रखें। अगर आप दिनभर उपवास रख पाने में सक्षम नहीं हैं, तो फलाहार कर सकते हैं। संध्याकाल में शुभ मुहूर्त के समय दीप प्रज्वलित कर भगवान शिव का आह्वान करें और उनसे परिवार के कुशल मंगल की प्रार्थना करें। इसके बाद भोजन करें। अगले दिन पूजा-पाठ संपन्न कर व्रत खोलें


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