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जानिए भारत की आयुर्वेदिक चिकित्सा की सम्पूर्ण विशेषताएँ

Usha dhiwar
25 Jun 2024 6:15 AM GMT
जानिए भारत की आयुर्वेदिक चिकित्सा की सम्पूर्ण  विशेषताएँ
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भारत की आयुर्वेदिक चिकित्सा की सम्पूर्ण विशेषताएँ:- Complete features of Indian Ayurvedic medicine

आयुर्वेदीय चिकित्सा विधि सर्वांगीण है। आयुर्वेदिक चिकित्सा के उपरान्त व्यक्ति की शारीरिक तथा मानसिक दोनों दशाओं में सुधार होता है।
आयुर्वेदिक औषधियों के अधिकांश घटक जड़ी-बूटियों, पौधों, फूलों एवं फलों आदि से प्राप्त की जातीं हैं। obtained from flowers and fruits etc. अतः यह चिकित्सा प्रकृति के निकट है।
अनेकों जीर्ण रोगों के लिए आयुर्वेद विशेष रूप से प्रभावी है।
आयुर्वेद न केवल रोगों की चिकित्सा करता है बल्कि रोगों को रोकता भी है। But it also prevents diseases.
आयुर्वेद भोजन तथा जीवनशैली में सरल परिवर्तनों के द्वारा रोगों को दूर रखने के उपाय सुझाता है। It not only cures diseases but also prevents diseases.
आयुर्वेदिक औषधियाँ स्वस्थ लोगों के लिए भी उपयोगी हैं।
आयुर्वेदिक चिकित्सा अपेक्षाकृत सस्ती है क्योंकि आयुर्वेद चिकित्सा में सरलता से उपलब्ध जड़ी-बूटियाँ एवं मसाले काम में लाये जाते हैं।
फरवरी २०२२ में केन्या के पूर्व प्रधानमन्त्री की बेटी की आंखों की गम्भीर और जीर्ण समस्या की केरल के एक आयुर्वैदिक वैद्यशाला में सफलता पूर्वक चिकित्सा की गयी। [10][11]
आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथो के अनुसार यह देवताओं कि चिकित्सा पद्धति है जिसके ज्ञान को मानव कल्याण method, the knowledge of which is used for the welfare of mankind के लिए निवेदन किए जाने पर देवताओं द्वारा धरती के महान आचार्यों को दिया गया। इस शास्त्र के आदि आचार्य अश्विनीकुमार माने जाते हैं जिन्होने दक्ष प्रजापति के धड़ में बकरे का सिर जोड़ना जैसी कई चमत्कारिक चिकित्साएं की थी। अश्विनीकुमारों से इंद्र ने यह विद्या प्राप्त की।
इंद्र ने धन्वंतरि को सिखाया। काशी के राजा दिवोदास धन्वंतरि के अवतार कहे गए हैं। उनसे जाकर अलग अलग संप्रदायों के अनुसार उनके प्राचीन और पहले आचार्यों आत्रेय / सुश्रुत ने आयुर्वेद पढ़ा।
अत्रि और भारद्वाज भी इस शास्त्र के प्रवर्तक माने जाते हैं। आयुर्वेद के आचार्य ये हैं These are the Acharyas of Ayurveda— अश्विनीकुमार, धन्वंतरि, दिवोदास (काशिराज), नकुल, सहदेव, अर्कि, च्यवन, जनक, बुध, जावाल, जाजलि, पैल, करथ, अगस्त्य, अत्रि तथा उनके छः शिष्य (अग्निवेश, भेड़, जतुकर्ण, पराशर, सीरपाणि, हारीत), सुश्रुत और चरक। ब्रह्मा ने आयुर्वेद को आठ भागों में बाँटकर प्रत्येक भाग का नाम 'तन्त्र' रखा । ये आठ भाग निम्नलिखित हैं
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