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भगवान श्री राम (Lord Rama) की कथा जिस लंकापति रावण (King Ravan) के बगैर अधूरी मानी जाती है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | भगवान श्री राम (Lord Rama) की कथा जिस लंकापति रावण (King Ravan) के बगैर अधूरी मानी जाती है. रावण भले ही राक्षसों का राजा था, लेकिन उसका जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था और वह महातपस्वी, महापंडित और तमाम विद्या का जानकार था. रावण से जुड़े अनजाने राज को जानने के लिए जरूर पढ़ें ये लेख.
जिस लंकापित रावण (Ravan) को राम कथा का खलनायक माना जाता है, उसके जीवन से जुड़े कई ऐसे राज हैं, जिनसे बहुत से लोग आज भी अनजान है. जैसे जिस रावण को हम सभी राक्षसों के राजा के रूप में जानते हैं, उसका संबंध ब्रह्मा जी से भी था. वाल्मीकि रामायण के अनुसार लंका का राजा रावण परमपिता ब्रह्मा जी का वंशज था. दरअसल, ब्रह्माजी के मानस पुत्र थे पुलस्त्य ऋषि और उनके पुत्र हुए विश्रवा, जिनका विवाह राक्षसकुल की कन्या कैकसी से हुआ था. जिनसे रावण, कुंभकर्ण, विभीषण का जन्म हुआ.
तमाम बुराईयों के बावजूद रावण के भीतर कई ऐसे गुण थे, जिसके कारण वह एक बड़ा शक्तिशाली राजा बना. रावण भगवान शिव (Lord Shiva) का परम भक्त था और मनचाहा वरदान पाने के लिए उनकी कठिन से कठिन तपस्या करता था. रावण को वेद, तंत्र-मंत्र, समेत तमाम तरह की सिद्धियों का ज्ञान था. उसने अपने जप-तप के बल से कई अमोघ शक्तियां हासिल की थीं.
रावण के बारे में मान्यता है कि उसने लोकों पर विजय प्राप्त की थी, लेकिन वह भगवान श्री राम के द्वारा वध किये जाने से पहले अपने जीवन में तीन बड़े योद्धाओं राजा बालि, राजा सहस्त्रबाहु और राजा बलि से हार का स्वाद चख चुका था.
साधु वेश धारण कर छल से सीता (Sita) का अपहरण करने वाला रावण जब माता सीता को अपने साथ लंका ले गया तो वह चाह कर भी उन्हें अपने साथ अपने महल में नहीं ले जा सका और उन्हें अशोक वाटिका में भेज दिया क्योंकि उसे नल कुबेर से बड़ा श्राप मिला हुआ था. कहते हैं कि एक बार स्वर्ग की अप्सरा रंभा कुबेरदेव के पुत्र नलकुबेर से मिलने जा रही थी, जिसे रास्ते में रोककर रावण ने उसका शीलहरण कर लिया. इस घटना से नाराज होकर नल कुबेर ने रावण को श्राप दिया कि यदि उसने किसी भी स्त्री को बगैर स्वीकृति के अपने महल में रखा या उसके साथ दुराचार किया तो वह उसी क्षण भस्म हो जाएगा. गौरतलब है कि रावण ने कुबेर को हराकर लंका पर कब्जा कर लिया था, जो कि रावण के ही सौतेले भाई थे.
रावण का अभिमान ही उसकी मृत्यु का बड़ा कारण बना. विश्वविजेता बनने के लिए रावण ने भगवान ब्रह्मा (Lord Brahma) को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहा, जिसके बाद उसने अपनी शक्तियों के अभिमान में आकर ब्रह्माजी से कहा कि उसका वध वानर और मनुष्य के अलावा कोई न कर सके. वर मांगते समय उसे लगा कि जिस रावण से देवता डरते हों, उसका भला वानर और मानव जैसे तुच्छ प्राणी क्या बिगाड़ पाएंगे. यही बड़ी गलती उसके लिए काल साबित हुई और अंत में भगवान श्री राम के द्वारा उसका वध हुआ.
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