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सूर्य देवता की पूजा के लिए श्रेष्ठ दिन,जानें सूर्य देव के जन्म की पौराणिक कथा
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। रविवार का दिन सूर्य देवता की पूजा के लिए श्रेष्ठ दिन माना जाता है. दरअसल, रविवार का दिन सूर्य देवता को ही समर्पित होता है, ऐसे में जो भी भक्त इस दिन सूर्य देवता की पूजा करते हैं उनके जीवन में सुख-समृद्धि की कोई कमी नहीं रहती है. धार्मिक ग्रंथों में सूर्य देव को रोजाना जल चढ़ाने का भी विशेष महत्व बताया गया है. मान्यता है कि तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें लाल फूल, अक्षत डालकर भक्ति भाव से सूर्य देवता का मंत्र जाप कर अर्घ्य देने से जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. इससे हमारी आयु, आरोग्य, धन, तेज, यश में इजाफा होता है. सूर्य देव असीमित तेज के प्रतीक हैं, ऐसे में सूर्य देव की कृपा से उनके भक्त भी तेज प्राप्त कर संसार में अपनी प्रतिष्ठा स्थापित करने में सफल होते हैं.
सूर्य देव के जन्म की है ये कथा
पौराणिक कथा के अनुसार सृष्टि के निर्माण के पहले सारा जगह प्रकाश रहित था. सबसे पहले कमलयोनि ब्रह्मा जी का प्राकट्य हुआ. उनके प्राकट्य के बाद मुख से पहला शब्द ॐ का निकला. जो सूर्य का तेज रूप सूक्ष्म रूप था. इसके बाद ब्रह्मा जी के चार मुखों के माध्यम से 4 वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद प्रकट हुए जो कि ॐ के तेज में एकाकार हो गए. ये वैदिक तेज ही आदित्य था जो पूरे विश्व का अविनाशी कारण माना जाता है. ब्रह्मा जी की प्रार्थना के कारण ही सूर्य ने अपने महातेज को समेटते हुए स्वल्प तेज को धारण कर लिया.
सृष्टि की रचना के दौरान ही ब्रह्मा जी के पुत्र मरीचि हुए. उनके पुत्र ऋषि कश्यप का विवाह अदिति के साथ संपन्न हुआ था. अदिति ने कठिन तपस्या करते हुए सूर्य भगवान को प्रसन्न किया. सूर्ये देव ने अदिति की इच्छापूर्ति के लिए सुषुम्ना नाम की किरण से उनके गर्भ में प्रवेश किया. गर्भावस्था के दौरान भी अदिति चान्द्रायण जैसे कठिन व्रत का पालन करती थीं. इस पर एक बार ऋषिराज कश्यप क्रोधित हो गए और उन्होंने अदिति से कहा कि तुम गर्भस्थ शिशु को उपवास रखकर क्यों मारना चाहती हो.
इतना सुनते ही देवी अदिति ने गर्भ में पल रहे बाल को उदर के बाहर कर दिया जो अपने दिव्य तेज से प्रज्जवलित हो रहा था. ये बालक कोई ओर नहीं बल्कि भगवान सूर्य शिशु रूप में गर्भ से प्रकट हुए थे. ब्रह्मपुराण में अदिति के गर्भ से जन्मे सूर्य के अंश को विवस्वान कहा गया है