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जानिए नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली का शुभ मुहूर्त, यम के निमित्त दीपक जलाने की विधि
हिंदी पंचांग के अनुसार, प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को छोटी दिवाली या नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है। छोटी दीपावली मुख्य रूप से दिवाली के एक दिन पहले मनाई जाती है लेकिन इस बार पंचांग भेद के कारण कई जगह नरक चतुर्दशी का त्योहार 03 नवंबर तो कई जगह इस दिन को 04 नवंबर को मनाया जाएगा। इस दिन को रूप चौदस, काली चौदस आदि नामों से भी जाना जाता है। इस दिन मुख्य रूप से मृत्यु के देवता यमदेव के निमित्त दीपदान करने का विधान है। मान्यता है कि इस नरक चतुर्दशी के दिन यमदेव के निमित्त विधि-विधान के साथ दीपदान करने से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। तो चलिए जानते हैं क्या है शुभ मुहूर्त और यम के निमित्त दीप प्रज्वलित करने की विधि-
यम दीया जलाने का महत्व-
नरक चतुर्दशी पर यम के नाम का दीपक प्रज्वलित करने के संबंध में एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार एक बार यमदेव ने अपनी दूतों को अकाल मृत्यु से बचने का उपाय बताते हुए कहा था कि जो व्यक्ति कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन दीप प्रज्वलित करेगा, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा। इसलिए नरक चतुर्दशी पर शाम के समय यम के निमित्त दीपदान करने की परंपरा है।
चतुर्दशी तिथि मुहूर्त-
कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी आरंभ- 03 नवंबर 2021 बुधवार को 09 बजकर 2 मिनट से
कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी समाप्त- 04 नवंबर 2021, गुरुवार को सुबह 06 बजकर 03 मिनट पर
यम के निमित्त दीपदान करने की विधि-
धर्म शास्त्रों के अनुसार दक्षिण दिशा को यम देव की दिशा माना गया है, इसलिए चतुर्दशी तिथि पर यम के नाम का दीपक दक्षिण दिशा में प्रज्वलित किया जाता है।
यह दीपक घर के किसी बड़े बुजुर्ग सदस्य के द्वारा प्रज्लित करते हैं।
यम के नाम का दीपक प्रज्वलित करने के लिए पिछली साल के रखे हुए पुुराने दीपक को ही प्रयोग में लाया जाता है।
यदि आपके पास पुराना दीपक न हो तो नया दीपक भी प्रज्लित किया जा सकता है।
नरक चतुर्दशी पर सरसों के तेल का दीपक प्रज्वलित किया जाता है।
इस दीपक को गेहूं साफ करने वाले सूप में रखकर प्रज्वलित करना चाहिए। यदि सूप न हो तो थाली में भी दीपक रखकर जलाया जा सकता है।
थोड़े से खील (धान का लावा) के दाने भी दीपक में डालने चाहिए और थोड़े से खील सूप या थाली में रखने चाहिए।
इस दीपक को अपने घर की परंपरा के अनुसार, द्वार, चौराहे या फिर घर से बाहर अकेले स्थान पर रखा जाता है।