धर्म-अध्यात्म

जानिए शीतला अष्टमी व्रत का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

Tara Tandi
24 March 2022 6:26 AM GMT
जानिए शीतला अष्टमी व्रत का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
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हर साल चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी मनाई जाती है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हर साल चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी मनाई जाती है। इसे बसौड़ा अष्टमी के नाम से भी जानते हैं। इस साल शीतला अष्टमी अष्टमी का पर्व 25 मार्च, शुक्रवार के दिन रखा जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार, होली के आठवें दिन शीतला अष्टमी का व्रत रखा जाता है। इस दिन माता शीतला की विधि-विधान से पूजा करने से व्यक्ति हर रोगों से दूर रहता है, साथ ही लंबी आयु का भी वरदान देती हैं।

मां शीतला का रूप कल्याणकारी माना जाता है। माता गर्दभ पर विराजमान होती हैं और हाथ में झाडू, कलश, सूप औप नीम की पत्तियां धारण करके मां शीतला हर किसी के दुखों को हर लेती हैं। मान्यता है कि इस दिन माता को बासी भोजन का ही भोग लगाया है। इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता है। जानिए शीतला अष्टमी व्रत का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।
शीतला अष्टमी शुभ मुहूर्त
शीतला अष्टमी तिथि - 25 मार्च, शुक्रवार
चैत्र कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि प्रारंभ- 25 मार्च को दोपहर 12 बजकर 09 मिनट से शुरू
चैत्र कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि समाप्त- 25 मार्च 2022 तो रात 10 बजकर 04 मिनट में समाप्त
भोग में चढ़ाएं बासी भोजन
शीतला अष्टमी के दिन माता शीलता की पूजा के दौरान बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। यह भोजन सप्तमी तिथि की शाम को बनता है। मां को मीठे चावल का भोग लगाना शुभ माना जाता है जो चावल और गुड़ के बनते हैं या फिर चावल और गन्ने के रस से बनते हैं। इसके अलावा मां शीलता को मीठी रोटी का भी भोग लगाया जाता है।
शीतला अष्टमी पूजा विधि
सप्तमी यानी 24 मार्च को चूल्हा आदि साफ करके स्नान कर लें और माता शीतला का भोग तैयार कर लें। इसी प्रसाद को 25 मार्च को माता को चढ़ाया जाएगा। अष्टमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी नित्य कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें। स्नान के बाद माता शीतला के सामने हाथों में फूल, अक्षत और दक्षिणा लेकर इस मंत्र -श्मम गेहे शीतलारोगजनितोपद्रव प्रशमन पूर्वकायुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्धिये शीतलाष्टमी व्रतं करिष्येश् से व्रत का संकल्प लें और सभी चीजें मां को अर्पित कर दें। इसके बाद मां शीतला को फूल अर्पित करें। इसके बाद सिंदूर लगाएं और वस्त्र अर्पित कर दें। इसके बाद भोग में बासा भोजन चढ़ाएं। इसके साथ ही आप चाहे तो दूध, रबड़ी, चावल आदि का भी भोग लगा सकते हैं। इसके बाद फूल की माध्यम से जल अर्पित करें। फिर दीपक-धूप जलाकर शीतला स्त्रोत का पाठ करें। अंत में आरती करते मां का आशीर्वाद लें और रात में जगराता व दीपमालाएं प्रज्जवलित करने का भी विधान है। बासी भोजन की घर के हर सदस्य को प्रसाद के रूप में खाएं।
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