धर्म-अध्यात्म

जानिए संतान की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है स्कंद षष्ठी व्रत

Tara Tandi
5 July 2022 4:57 AM GMT
जानिए संतान की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है स्कंद षष्ठी व्रत
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स्कंद षष्ठी भगवान कार्तिकेय को समर्पित महत्वपूर्ण हिंदू त्योहारों में से एक है। स्कंद षष्ठी को कांडा षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। स्कंद षष्ठी भगवान कार्तिकेय को समर्पित महत्वपूर्ण हिंदू त्योहारों में से एक है। स्कंद षष्ठी को कांडा षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। भगवान कार्तिकेय का एक नाम स्कंद कुमार भी है। तमिल हिंदुओं के बीच लोकप्रिय हिंदू देवता भगवान स्कंद कुमार हैं। वह भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र हैं और उन्हें भगवान गणेश का छोटा भाई माना जाता है। लेकिन उत्तरी भारत में, स्कंद को भगवान गणेश के बड़े भाई के रूप में पूजा जाता है। भगवान स्कंद के अन्य नाम मुरुगन, कार्तिकेयन और सुब्रमण्य हैं। स्कंद षष्ठी को कांडा षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। पंचमी तिथि या षष्ठी तिथि सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच शुरू होती है और बाद में स्कंद षष्ठी व्रत के लिए इस दिन पंचमी और षष्ठी दोनों को संयुग्मित किया जाता है। इसका उल्लेख धर्मसिंधु और निर्णय सिंधु में मिलता है । जुलाई के महीने में स्कंद षष्टि का व्रत 5 जुलाई यानी मंगलवार के दिन रखा जाएगा। मान्यता है कि भगवान कार्तिकेय की विधि विधान से पूजा करने पर व्यक्ति को सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को स्कंद षष्ठी व्रत रखा जाता है। आइए जानते हैं व्रत से की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में।

स्कंद षष्ठी 2022: तिथि और समय
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि का आरंभ: 5 जुलाई, मंगलवार, दोपहर 2:57 से
षष्ठी तिथि का समापन: 6 जुलाई, बुधवार सायं 7:28 पर होगा।
स्कंद षष्ठी का व्रत 5 जुलाई को रखा जाएगा।
स्कंद षष्ठी 2022: तिथि और समय
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि का आरंभ: 5 जुलाई, मंगलवार, दोपहर 2:57 से
षष्ठी तिथि का समापन: 6 जुलाई, बुधवार सायं 7:28 पर होगा।
स्कंद षष्ठी का व्रत 5 जुलाई को रखा जाएगा।
स्कंद षष्ठी व्रत का महत्व
भगवान मुरुगन ने सोरपद्मन और उसके भाइयों तारकासुर और सिंहमुख को षष्ठी के दिन मार दिया था। स्कन्द षष्ठी का यह दिन जीत का प्रतीक है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान मुरुगन ने वेल या लांस नामक अपने हथियार का उपयोग करके सोरपद्मन का सिर काट दिया था। कटे हुए सिर से दो पक्षी निकले - एक मोर जो कार्तिकेय का वाहन बन गया और एक मुर्गा जो उनके झंडे पर प्रतीक बन गया। स्कंद षष्ठी का व्रत रखने से निसंतान को संतान की प्राप्ति होती है। स्कंद षष्ठी व्रत की कथा के अनुसार, च्यवन ऋषि के आंखों की रोशनी चली गई थी, तो उन्होंने स्कंद कुमार की पूजा की थी। व्रत के पुण्य प्रभाव से उनके आंखों की रोशनी वापस आ गई।
सभी कष्टों से मिलती है मुक्ति
हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि स्कंद षष्ठी का व्रत करने वाले को लोभ, मोह, क्रोध और अहंकार से मुक्ति मिल जाती है। धन, यश और वैभव में वृद्धि होती है। व्यक्ति सभी शारीरिक कष्टों और रोगों से छुटकारा पाता है।
स्कंद षष्ठी की पूजा विधि
स्कंद षष्ठी के दिन ब्रह्ममुहूर्त में स्नान कर खुद को शुद्ध कर लें।
इसके उपरांत एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं और भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा की स्थापना करें।
इनके साथ ही शंकर-पार्वती और गणेश जी की मूर्ति भी स्थापित करें।
इसके बाद कार्तिकेय जी के सामने कलश स्थापित करें।
फिर सबसे पहले गणेश वंदना करें।
अगर संभव हो तो अखंड ज्योत जलाएं, सुबह शाम दीपक जरूर जलाएं ।
इसके उपरांत भगवान कार्तिकेय पर जल अर्पित करें और नए वस्त्र चढ़ाएं।
पुष्प या फूलों की माला अर्पित कर फल, मिष्ठान का भोग लगाएं।
मान्यता है इस दिन विशेष कार्य की सिद्धि के लिए की गई पूजा फलदायी होती है।


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