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जानिए श्रीरामचरित मानस में रावण और अंगद के प्रसंग की वह सीख, जिसमें 14 अवगुण व्यक्ति को कर सकते हैं बर्बाद
अंगद रावण से कहते हैं कि -
कौल कामबस कृपिन बिमूढ़ा। अति दरिद्र अजसी अति बूढ़ा।।
सदा रोगबस संतत क्रोधी। बिष्नु बिमुख श्रुति संत बिरोधी।।
तनु पोषक निंदक अघ खानी। जीवत सव सम चौदह प्रानी।।
अर्थ: वाम मार्गी यानी दुनिया से उलटा चलने वाला, कामी, कंजूस, अत्यंत मूर्ख, अति दरिद्र, बदनाम, बहुत बूढ़ा, नित्य रोगी, हमेशा क्रोध में रहने वाला, भगवान से विमुख, वेद और संतों का विरोधी, अपना ही पोषण करने वाला, निंदा करने वाला और पाप कर्म करना, ये 14 बुराइयां जल्दी से जल्दी छोड़ देनी चाहिए, वरना सबकुछ बर्बाद हो जाता है।
ये है पूरा प्रसंग
इस प्रसंग में श्रीराम ने अंगद को अपना दूत बनाकर रावण के दरबार में भेजा था। जैसे ही अंगद ने रावण के नगर में प्रवेश किया, उसकी भेंट रावण के एक पुत्र से हुई। दोनों की बीच लड़ाई हुई, जिसमें अंगद विजयी हो गया। अंगद जब रावण के दरबार में पहुंचा तो उसने रावण को बालि के बारे में बताया। बालि का नाम सुनते ही रावण थोड़ा असहज हो गया था।
अंगद ने रावण से कहा कि वह श्रीराम से युद्ध न करें। सीता माता को सकुशल लौटा दे, इसी में सभी का कल्याण है। लेकिन, रावण अपने अहंकार में था। उसने अंगद की बातें नहीं मानी। तब अंगद ने रावण से कहा था कि जिन लोगों में 14 बुराइयां होती हैं, वे जीते जी मृत समान होते हैं।