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धर्म-अध्यात्म
जानिए परिवर्तिनी एकादशी पर इन मंत्रों का जाप करने से होगी विष्णु जी की विशेष कृपा
Bhumika Sahu
17 Sep 2021 4:33 AM GMT
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Parivartini Ekadashi: परिवर्तिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए, इन मंत्रों का जाप करने से विशेष फल प्राप्त होता है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदू धर्म में एकादशी (Ekadashi) के व्रत का का महत्त्व तो विशेष होता ही है. ऐसे में जब ये चातुर्मास में पड़ती है तो इसका महत्त्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है. इसी वजह से परिवर्तनी एकादशी का महत्त्व भी काफी ज्यादा होता है. परिवर्तिनी एकादशी (Parivartini Ekadashi) 17 सितंबर यानी आज है. इसे जलझूलनी एकादशी या पद्मा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. पद्म पुराण के अनुसार चतुर्मास के दौरान भगवान विष्णु वामन रूप में पाताल में निवास करते हैं. इसलिए इस एकादशी को भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा की जाती है. मान्यता है कि परिवर्तिनी एकादशी पर पूजा-अर्चना और व्रत करने से सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
धार्मिक मान्यता है कि परिवर्तिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा पूजा-अर्चना करने से जितना पुण्य प्राप्त होता है. उतना ही पुण्य इस दिन श्री हरि के मंत्रों का जाप करने से भी होता है. इसलिए इस दिन पूजा के साथ-साथ इस दिन मंत्र का जाप भी जरूर करना चाहिए. लेकिन कई बार श्रद्धालुओं को ये जानकारी नहीं होती है कि श्री हरि के किन मंत्रों का जाप इस दिन करना चाहिए. तो आइये हम आपको बताते हैं कि शास्त्रों में ऐसे कौन से मंत्र हैं जिनका जाप करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं.
भगवान विष्णु को समर्प्रित मुख्य मंत्र
ॐ नमोः नारायणाय. ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय ||
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विष्णु गायत्री महामंत्र
ऊँ नारायणाय विद्महे।
वासुदेवाय धीमहि।
तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।।
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विष्णु कृष्ण अवतार मंत्र
श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे।
हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।
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विष्णु रूपं पूजन मंत्र
शांता कारम भुजङ्ग शयनम पद्म नाभं सुरेशम।
विश्वाधारं गगनसद्र्श्यं मेघवर्णम शुभांगम।
लक्ष्मी कान्तं कमल नयनम योगिभिर्ध्यान नग्म्य्म ।
वन्दे विष्णुम भवभयहरं सर्व लोकैकनाथम।।
भगवान विष्णु जी की आरती
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय…॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय…॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय…॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय…॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय…॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय…॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय…॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय…॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय…॥
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