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धर्म-अध्यात्म
जानिए गुरु नानक देव से जुड़ी कुछ अनोखी बातें, जब उन्होंने जनेऊ पहनने से कर दिया था इनकार
Nilmani Pal
30 Nov 2020 1:18 PM GMT
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बचपन से ही गुरु नानक जी का मन बचपन आध्यात्मिक चीजों की तरफ ज्यादा था
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आज सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव का 551वां प्रकाश पर्व मनाया जा रहा है. गुरु नानक का जन्म कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था इसलिए ये दिन बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. गुरु नानक देव जी सिख धर्म के प्रथम गुरु थे, इसलिए इस दिन को गुरु पर्व के रूप में भी मनाया जाता है. गुरु नानक देव के उपदेश आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं. आइए जानते हैं नानक देव से जुड़ी कुछ अनोखी बातें.
नानक साहिब का जन्म 15 अप्रैल 1469 को पंजाब के तलवंडी में हुआ था, जो कि अब पाकिस्तान में हैं. इस जगह को ननकाना साहिब के नाम से भी जाना जाता है. गुरु नानक देव जी का जन्म ऐसे समय में हुआ था जब लोग अंधविश्वास और आडंबरों को ज्यादा मानते थे. बचपन से ही गुरु नानक जी का मन बचपन आध्यात्मिक चीजों की तरफ ज्यादा था.
हिन्दू परिवार में जन्मे गुरु नानक ने सभी धर्मों का व्यापक रूप से अध्ययन किया जिसकी वजह से वो बचपन से ही आध्यात्मिक और ज्ञानी हो गए थे. वो किसी भी तरह के अंधविश्वास को नहीं मानते थे और आडंबरों का विद्रोह करते थे. गुरु नानक जी के बचपन के कई किस्से बहुत प्रचलित हैं.
कहा जाता है कि गुरु नानक देव जब 11 साल के थे तो उन्हें जनेऊ पहनने को कहा गया. उस समय इस उम्र के सारे हिन्दू लड़के पवित्र जनेऊ पहनना शुरू कर देते थे लेकिन गुरु नानक ने जनेऊ पहनने से साफ इनकार कर दिया. उनका कहना था कि लोगों की इस तरह की परंपराओं को मानने की बजाय अपने ज्ञान और गुणों को बढ़ाना चाहिए.
1496 में गुरू नानक की शादी हुई और कुछ समय बाद उनके दो बच्चे भी हुए. परिवार होने के बावजूद नानक जी का मन कभी भी घर गृहस्थी में नहीं लगा और वह हमेशा मानव सेवा ही करते रहे. गुरु नानक देव ने बिना सन्यास धारण किए अध्यात्म की राह को चुना था. उनका मानना था कि अध्यात्म की राह पर चलने के लिए व्यक्ति को सन्यासी बनने और अपने कर्तव्यों को अधूरा छोड़ने की जरूरत नहीं है.
नानक ने 30 सालों तक भारत, तिब्बत और अरब समेत कई जगहों पर आध्यात्मिक यात्रा की. इस दौरान उन्होंने सारे धर्मों के बारे में बहुत अध्ययन किया और गलत बातों के प्रति लोगों को जागरुक करना भी शुरू किया. नानक ने अपने विद्रोही विचारों से साधुओं और मौलवियों पर सवाल उठाना शुरू कर किया. उनका कहना था कि कोई भी रस्म-रिवाज़ निभाने के लिए पुजारी या मौलवी की जरूरत नहीं है क्योंकि ईश्वर एक है और हर इंसान ईश्वर तक स्वंय पहुंच सकता है.
नानक अंधविश्वास और दिखावे के कट्टर विरोधी थे और धार्मिक कुरीतियों के खिलाफ हमेशा अपनी आवाज उठाते थे. नानक लोगों के अंतर्मन में बदलाव लाना चाहते थे. वो आजीवन लोगों यह समझाते रहे कि लोभ, लालच बुरी बलाएं हैं. वो लोगों को प्रेम, एकता, समानता और भाई-चारा का संदेश देते थे.
गुरु नानक ने कुछ समय के लिए मुंशी का कार्य भी किया लेकिन उनका मन इस काम में भी बहुत दिनों तक नहीं लगा. वो अपना पूरा समय आध्यात्मिक विषयों के अध्ययन में लगाते थे. नानक का मानना था कि आध्यात्म की राह पर सिर्फ चिंतन के जरिए ही आगे बढ़ा जा सकता है. उनका पूरा जीवन धार्मिक उपदेश में बीता.
गुरु नानक देव ने अपने अंतिम दिन पंजाब के करतारपुर में लोगों को शिक्षा देते हुए गुजारे. उनका उपदेश सुनने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे. उनकी शिक्षाओं को 974 भजनों के रूप में अमर किया गया, जिसे सिख धर्म के लोग गुरु ग्रंथ साहिब के रूप में मानते हैं.
गुरु नानक ने कई तरह के धार्मिक सुधार किए जिनमें से एक जाति व्यवस्था को खत्म करना था. उन्होंने लोगों के मन में ये भावना स्थापित की कि हर इंसान एक है, चाहे वो किसी भी जाति या लिंग का हो. गुरू नानक जी को विश्व भर में सांप्रदायिक एकता, सच्चाई, शांति, सदभाव के ज्ञान को बांटने के लिए याद किया जाता है.
Nilmani Pal
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