धर्म-अध्यात्म

जानिए मंगला गौरी व्रत का पूजा मुहूर्त और महत्व

Tara Tandi
22 July 2022 6:16 AM GMT
जानिए मंगला गौरी व्रत का पूजा मुहूर्त और महत्व
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सावन (Sawan) का मंगला गौरी व्रत (Mangala Gauri Vrat) सोमवार व्रत के समान ही महत्वपूर्ण होता है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सावन (Sawan) का मंगला गौरी व्रत (Mangala Gauri Vrat) सोमवार व्रत के समान ही महत्वपूर्ण होता है. सावन के मंगलवार को माता मंगला गौरी यानि देवी पार्वती की पूजा करते हैं और व्रत रखते हैं. सावन का दूसरा मंगला गौरी व्रत 26 जुलाई को है, इस दिन सावन शिवरात्रि (Sawan Shivratri) भी है. पहला मंगला गौरी व्रत 19 जुलाई को था. मंगला गौरी व्रत सुहागन महिलाएं रखती हैं. वे अपने जीवनसाथी की लंबी आयु और खुशहाल दांपत्य जीवन के लिए मंगला गौरी की पूजा करती हैं. देवी मंगला गौरी की कृपा से संतान का जीवन भी सुख और समृद्धि से भरा होता है. पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र से जानते हैं दूसरे सावन मंगला गौरी व्रत के दिन पूजा मुहूर्त के बारे में.

सावन का दूसरा मंगला गौरी व्रत 2022
सावन का दूसरा मंगला गौरी व्रत कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को है. यह उदयातिथि के आधार पर है. त्रयोदशी तिथि के देव भगवान शिव शंकर हैं. ऐसे में 26 जुलाई को मंगला गौरी व्रत रखने से माता पार्वती और भगवान शिव दोनों का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है.
इसके लिए आपको माता पार्वती के साथ भगवान शिव शंकर की भी पूजा करनी चाहिए. शिव शंकर की कृपा से पुत्र, धन, धान्य आदि में वृद्धि होती है, जबकि मंगला गौरी के आशीर्वाद से अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
मंगला गौरी व्रत 2022 मुहूर्त
26 जुलाई को शाम 06 बजकर 46 मिनट तक सावन माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि है और उसके बाद से चतुर्दशी प्रारंभ हो जा रही है. चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि होता है. इस बार सावन शिवरात्रि 26 जुलाई को है. ऐसे में आप मंगला गौरी व्रत के साथ सावन शिवरात्रि व्रत का भी पुण्य प्राप्त कर सकते हैं.
इस दिन का शुभ समय या अभिजित मुहूर्त 12 बजे से दोपहर 12:55 बजे तक है. राहुकाल 03:52 बजे से शाम 05:34 बजे तक है. भद्रा शाम 06:46 बजे से अगली सुबह 05:40 बजे तक है. ऐसे में आप माता मंगला गौरी की पूजा में राहुकाल और भद्रा का त्याग करें.
मंगला गौरी व्रत का महत्व
मंगला गौरी व्रत सुखी वैवाहिक जीवन के लिए रखा जाता है. माता पार्वती ने कठोर तप करके भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया. सुहागन महिलाएं यह व्रत इसलिए रखती हैं कि उनको भी माता पार्वती के समान अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त हो.
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