धर्म-अध्यात्म

जानिए अमरनाथ यात्रा से जुड़ी रोचक जानकारी

Tara Tandi
6 July 2022 1:53 PM GMT
जानिए अमरनाथ यात्रा से जुड़ी रोचक जानकारी
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बाबा बर्फानी की शिवलिंग आकार ले चुकी है. बाबा के दर्शन करने के लिए अमरनाथ यात्रा (Amarnath Yatra) 30 जून से शुरू हो चुकी है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। बाबा बर्फानी की शिवलिंग आकार ले चुकी है. बाबा के दर्शन करने के लिए अमरनाथ यात्रा (Amarnath Yatra) 30 जून से शुरू हो चुकी है. जो 11 अगस्त तक चलेगी. बता दें कि अमरनाथ धाम जम्मू-कश्मीर में हिमालय पर्वत की गोद में मौजूद है. यहां एक पवित्र गुफा है जिसमें हिम शिवलिंग के रूप में शिव जी विराजमान होते हैं. हर साल शिवलिंग (Shivling) अपने आप प्राकृतिक तौर से बनती है. इस स्थल को बेहद पवित्र माना जाता है. हिम यानी बर्फ से शिवलिंग बनने के कारण यहां शिवजी को बाबा बर्फानी (Baba Barfani) कहा जाता है. कहा जाता है कि जिस गुफा में हर साल बाबा बर्फानी विराजमान होते हैं, उस गुफा की खोज एक मुस्लिम ने की थी, जिसकी जानकारी ज्यादातर लोगों को नहीं है. हालांकि इसमें कितनी सच्चाई है, इसका दावा नहीं किया जा सकता क्योंकि 19वीं शताब्दी के किसी दस्तावेज में इस तरह की बात का जिक्र नहीं है. आइए आपको बताते हैं इस दावे में कितनी सच्चाई है?

गड़रिया की ये कहानी है प्रचलित
कहा जाता है कि एक बूटा मलिक नामक एक मुस्लिम गड़रिया ने 1850 में अमरनाथ की गुफा की खोज की थी. एक दिन अपनी भेड़ को चराते-चराते बहुत दूर निकल गया. ऊपर पहाड़ पर उसकी भेंट एक साधु से हुई. कहा जाता है कि बूटा विनम्र और दयालु स्वभाव से प्रसन्न होकर उस साधु ने बूटा को एक कोयले से भरा पात्र दिया. बूटा ने जब घर आकर उस कांगड़ी को देखा तो उस पात्र में कोयले की जगह सोना भरा हुआ था. बूटा ये देखकर बेहद खुश हुआ और उस साधु को धन्यवाद कहने के लिए दोबारा उस स्थान पर गया. वहां जाकर देखा तो साधु तो मौजूद नहीं थे, लेकिन एक गुफा जरूर वहां थी.
बूटा जब उस गुफा के अंदर पहुंचा तो वहां उसे बर्फ से बनी शिवलिंग दिखी जो दूर से ही चमक रही थी. इस अद्भुत शिवलिंग को देखते ही उसका मन शांत हो गया. अपने इस अनुभव को उसने गांव वालों से साझा किया. कहा जाता है कि इस घटना के तीन साल बाद पहली अमरनाथ यात्रा शुरू हुई. माना जाता है कि बूटा के वंशज आज भी इस गुफा की देखरेख करते हैं.
किसी दस्तावेज में नहीं है इस घटना का जिक्र
बूटा द्वारा गुफा को ढूंढने की बात में कितनी सच्चाई है, इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता क्योंकि 19वीं शताब्दी के किसी भी ऐतिहासिक दस्तावेज में इस तरह का जिक्र नहीं किया गया है. जबकि कहानी के हिसाब से बूटा ने इस गुफा की खोज 1850 में ही कर ली थी. सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल के तौर पर बूटा की कहानी का प्रचार 20वीं शताब्दी में शुरू हुआ है. कई जगहों पर इस गड़रिए का नाम और खोज की तारीख भी अलग अलग दी गई है. गड़रिए का नाम अदम मलिक, अकरम मलिक और बूटा मलिक बताया गया है. साथ ही अमरनाथ गुफा (Amarnath Cave) की खोज का समय 16 शताब्दी से 19वीं शताब्दी के बीच मिलता है.
1842 में एक ब्रिटिश यात्री ने की थी अमरनाथ की यात्रा
इतना ही नहीं 1842 में एक ब्रिटिश यात्री जीटी विग्ने जब अमरनाथ यात्रा की थी, तो उन्होंने तमाम श्रद्धालुओं को अमरनाथ की यात्रा करते हुए देखा था. इस बात का जिक्र उन्होंने अपनी एक किताब में किया है. इतना ही नहीं, मुगल प्रशासक अली मरदान खान को लेकर कहा जाता है कि उसने 17वीं शताब्दी में बाबा बर्फानी और अमरनाथ यात्रियों का मजाक उड़ाया था. फ्रांसीसी यात्री फ्रैंकोइस बरनियर ने भी 1663 में कश्मीर यात्रा के दौरान एक बर्फ की गुफा का जिक्र किया है. माना जाता है कि उन्होंने अमरनाथ की ही गुफा का जिक्र किया है. इन तथ्यों को देखा जाए तो मुस्लिम गड़रिया द्वारा गुफा की खोज वाली बात एकदम गलत साबित होती है.
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