धर्म-अध्यात्म

जानिए कांवड़ यात्रा से जुड़े रोचक तथ्य

Tara Tandi
21 July 2022 5:21 AM GMT
जानिए कांवड़ यात्रा से जुड़े रोचक तथ्य
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सावन माह में होने वाली यह यात्रा कण-कण को शिवमय बना देती है। लाखों शिवभक्तों से समूचा वातावरण भक्तिमय हो जाता है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सावन माह में होने वाली यह यात्रा कण-कण को शिवमय बना देती है। लाखों शिवभक्तों से समूचा वातावरण भक्तिमय हो जाता है। यह अवसर है पवित्र कांवड़ यात्रा का। इस अद्भुत यात्रा को लेकर कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। कहा जाता है कि सच्चे मन से और पूरे विधि विधान के साथ इस यात्रा को पूर्ण करने वालों की समस्त मनोकामनाएं भोलेनाथ अवश्य पूर्ण करते हैं। आइए जानते हैं इस यात्रा से जुड़े कुछ रोचक तथ्य।

कांवड़ यात्रा का संबंध समुद्र मंथन से जुड़ा हुआ माना जाता है। सागर मंथन के समय निकले हलाहल विष को भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण कर लिया और वह नीलकंठ कहलाए। इस विष के असर को कम करने के लिए भगवान शिव पर सभी देवताओं ने पवित्र गंगाजल अर्पित किया। इससे भगवान शिव सामान्य होने लगे तभी से भोलेनाथ पर जलाभिषेक की परंपरा आरंभ हुई। कांवड़ यात्रा पर जाने वाले लाखों श्रद्धालु गंगाजल लाकर तीनों जगत के स्वामी भोलेनाथ पर अर्पित करते हैं। मान्यता है कि सबसे पहले भगवान शिव के परमभक्त भगवान परशुराम ने कांवड़ उठाई थी। उन्हें पहला कांवड़िया माना जाता है। यह भी मान्यता है कि समुद्र मंथन के बाद रावण ने कांवड़ से जल लेकर भगवान शिव का अभिषेक किया। श्रवण कुमार ने भी अपने माता पिता को कंधे पर कांवड़ में बैठाकर पैदल यात्रा कराई और भगवान शिव का गंगाजल से अभिषेक किया। इस पावन यात्रा में नियमों का विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है। कांवड़ में किसी तीर्थ का या बहती हुई पवित्र नदी का ही जल भरना चाहिए। कुआं या तालाब का जल नहीं। कांवड़ यात्रा पैदल ही पूरी करना चाहिए। गंगाजल से भरी कांवड़ को कभी भी जमीन पर नहीं रखा जाता। कांवड़ यात्रा करने वालों को पूरे सावन माह सात्विक व्यवहार करना होता है। कांवड़ यात्रा में पैदल ही चलने का विधान है। कांवड़िये के लिए चारपाई का प्रयोग करना भी वर्जित है। कांवड़ यात्रा में कोई शृंगार सामग्री का प्रयोग नहीं किया जाता है।


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