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धर्म-अध्यात्म
गरुड़ पुराण में जाने मृत्यु के समय क्यों बंद हो जाती है जुबां
Tara Tandi
1 July 2021 9:35 AM GMT
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जो संसार में आया है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| जो संसार में आया है, उसे एक दिन यहां से वापस जरूर जाना है, लेकिन अक्सर मनुष्य जन्म लेने के बाद मोह माया में इस कदर बंध जाता है कि परिवार को छोड़कर कभी जाना ही नहीं चाहता. मृत्यु का समय जब निकट आता है, तो भी उसमें जीने की चाह बाकी होती है. ऐसे समय में यमराज के दो दूत उसकी आत्मा को यमपाश से बांधकर जबरन खींच लेते हैं.
ये यमपाश इतना शक्तिशाली होता है कि व्यक्ति चाहकर भी इससे मुक्त नहीं हो पाता. इस दौरान आत्मा को काफी कष्ट सहना पड़ता है और व्यक्ति चाहकर भी कुछ कह नहीं पाता. इन सभी बातों का वर्णन गरुड़ पुराण में मिलता है. इसीलिए कहा जाता है कि उम्र बढ़ने के साथ व्यक्ति को मोह माया छोड़ देनी चाहिए और भगवान में ध्यान लगाना चाहिए ताकि उसे प्राण छोड़ते समय ज्यादा कष्ट न सहना पड़े और मृत्यु के बाद सद्गति प्राप्त हो. जानिए मृत्यु को लेकर और क्या कहता है गरुड़ पुराण.
इसलिए बंद हो जाती है जुबां
गरुड़ पुराण के मुताबिक मृत्यु का समय जब पास आता है, तो व्यक्ति के सामने दो भयानक शक्ल वाले यमदूत खड़े हो जाते हैं, जिन्हें देखकर ही व्यक्ति बुरी तरह से घबरा जाता है. वो अपने प्राण बचाना चाहता है और परिवार से काफी कुछ कहना चाहता है, लेकिन कुछ बोल नहीं पाता. उसकी जुबां बंद हो जाती है, बस गले से घर-घर की आवाज आती है. इस बीच यमदूत पाश से उसके प्राणों को जबरन खींचते हैं. इस पूरे घटनाक्रम के दौरान एक बार व्यक्ति की आंखों के सामने वो सारी घटनाएं गुजरती हैं, जो कर्म उसने अपने जीवन में किए हैं.
कर्मों के आधार पर यमराज करते हैं न्याय
मरते समय जो घटनाएं व्यक्ति के सामने आते हैं, वहीं उसके कर्म बन जाते हैं और जब उसकी आत्मा यमलोक पहुंचती है तो उन्हीं कर्मों के हिसाब से यमराज उस आत्मा के साथ न्याय करते हैं. मृत्यु के बाद पापी व्यक्ति की आत्मा बुरी तरह से डरी हुई होती है क्योंकि उसे पता होता है कि उसे इसका कठोर दंड भुगतना पड़ेगा. इसीलिए कहा जाता है कि अपने कर्मों को अच्छा रखें. धर्म के रास्ते पर चलें और ईश्वर का नाम जपते रहें, ताकि मरते समय परमेश्वर का नाम ही आपके कर्मों में शामिल होकर आपके साथ जाए और आप इन कष्टों से बच सकें. जो व्यक्ति मृत्यु के समय मोह माया त्यागकर परमेश्वर का नाम मन में जपता है, उसे प्राण छोड़ते हुए बहुत कष्ट नहीं होता और उसकी आत्मा को सद्गति प्राप्त होती है.
(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)
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