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नई दिल्ली : आदि गुरु शंकराचार्य हिंदू धर्म में एक विशेष स्थान रखते हैं। कई मान्यताओं के अनुसार श्री आदि शंकराचार्य को भगवान शिव का अवतार भी माना जाता है। उसका जीवन मानव मात्र के लिए प्रेरणा का स्रोत है। ऐसे में आइए जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ जरूरी बातें।
कौन थे आदि शंकराचार्य?
आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म आठवीं सदी में केरल के कालड़ी गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम शिवगुरु और माता का नाम आर्यम्बा था। शिवगुरु शास्त्रों के ज्ञाता थे और उन्होंने अपने पुत्र का नाम शंकर रखा गया, जो आगे चलकर वह आदि गुरु शंकराचार्य कहलाए। वह बहुत ही कम उम्र में वेदों के जानकार और संन्यासी बन गए थे। वहीं मात्र 32 साल की उम्र में उन्होंने अपना देह त्याग दिया था।
श्री आदि शंकराचार्य का योगदान
श्री आदि शंकराचार्य ने प्राचीन भारतीय उपनिषदों के सिद्धांत और हिन्दू संस्कृति को पुनर्जीवित करने का कार्य किया। साथ ही उन्होंने अद्वैत वेदान्त के सिद्धान्त को प्राथमिकता से स्थापित किया। उन्होंने धर्म के नाम पर फैलाई जा रही तरह-तरह की भ्रांतियों को मिटाने का काम किया। सदियों तक पंडितों द्वारा लोगों को शास्त्रों के नाम पर जो गलत शिक्षा दी जा रही थी, उसके स्थान पर सही शिक्षा देने का कार्य आदि शंकराचार्य ने ही किया। आज शंकराचार्य को एक उपाधि के रूप में देखा जाता है, जो समय-समय पर एक योग्य व्यक्ति को सौंपी जाती है।
मठों की स्थापना
श्री आदि गुरु शंकराचार्य ने हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए चार अगल दिशाओं में चार मठों की स्थापना की। उत्तर दिशा में बद्रिकाश्रम में ज्योर्तिमठ, पश्चिम दिशा में द्वारका में शारदा मठ, पूर्व दिशा में जगन्नाथ पुरी में गोवर्धन मठ और दक्षिण दिशा में श्रंगेरी मठ, आदि शंकराचार्य की ही देन है।
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Apurva Srivastav
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