धर्म-अध्यात्म

जानें हम प्रभु श्रीराम की भक्ति किस प्रकार करें ?

Kajal Dubey
9 April 2022 5:29 AM GMT
जानें  हम प्रभु श्रीराम की भक्ति किस प्रकार करें ?
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चैत्र शुक्ल नवमी को ‘श्री रामनवमी’ कहते हैं ।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। चैत्र शुक्ल नवमी को 'श्री रामनवमी' कहते हैं । श्रीराम के जन्म के उपलक्ष्य में श्रीरामनवमी (इस वर्ष 10 अप्रैल) मनाई जाएगी। इस दिन जब पुष्य नक्षत्र पर, मध्यान्ह के समय, कर्क लग्न में सूर्यादि पांच ग्रह थे, तब अयोध्या में प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ । अनेक राम मंदिरों में चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से लेकर नौ दिन तक यह उत्सव मनाया जाता है। रामायण के पारायण, कथा-कीर्तन तथा श्रीराम की मूर्ति का विविध शृंगार कर, यह उत्सव मनाया जाता है । नवमी के दिन दोपहर में श्रीराम जन्म का कीर्तन किया जाता है।

मध्याह्न काल में एक नारियल को छोटे बच्चे की टोपी पहनाकर पालने में रखकर, पालने को हिलाते हैं। भक्तगण उस पर गुलाल तथा पुष्पों का वर्षाव करते हैं। इस दिन श्रीराम का व्रत भी रखा जाता है। ऐसा कहा गया है कि यह व्रत करने से सभी व्रतों का फल प्राप्त होता है तथा सर्व पापों का क्षालन होकर अंत में उत्तम लोकों की प्राप्ति होती है।
देवताओं एवं अवतारों की जन्मतिथि पर उनका तत्त्व भूतल पर अधिक मात्रा में सक्रिय रहता है। श्रीरामनवमी के दिन रामतत्त्व सदा की तुलना में 1 सहस्र गुना सक्रिय रहता है। इसका लाभ लेने हेतु रामनवमी के दिन 'श्रीराम जय राम जय जय राम ।' यह नामजप अधिकाधिक करना चाहिए।
प्रभु श्रीराम का नामजप 'श्रीराम जय राम जय जय राम' - यह श्रीराम का अत्यंत प्रचलित नामजप है। इस जप में 'श्रीराम', यह शब्द श्रीराम का आह्वान है। 'जय राम' यह शब्द स्तुति वाचक है और 'जय जय राम' – यह 'नमः', जो अन्य देवताओं के नामजप के अंत में उपयोग किया जाता है। उस प्रकार शरणागति का दर्शक है ।
रामायण में 'राम से बडा राम का नाम' की कथा भी हम सबने सुनी है । सभी जानते हैं कि 'श्रीराम' शब्द लिखे पत्थर भी समुद्र पर तैर गए। उसी प्रकार श्रीराम का नामजप करने से हमारा जीवन भी इस भवसागर से निश्चित मुक्त होगा ।
श्रीराम तत्त्व का अधिक लाभ होने के लिए क्या कर सकते हैं ?
अध्यात्मशास्त्र की दृष्टि से प्रत्येक देवता एक विशिष्ट तत्त्व है। श्री रामनवमी अथवा देवालय में श्रीराम तत्त्व आकर्षित एवं प्रक्षेपित करने वाली सात्त्विक रंगोलियां बनानी चाहिए। इन रंगोलियों को बनाने से वहां का वायुमंडल श्री रामतत्त्व से प्रभारित होता है, जिसका लाभ सभी को होता है । श्रीराम के एक हाथ में धनुष बाण है । एक हाथ आशीर्वाद देनेवाला है ।
हम प्रभु श्रीराम की भक्ति किस प्रकार करें ?
आजकल देवताओं का विविध प्रकार से अनादर किया जाता है। व्याख्यान, पुस्तक आदि के माध्यम से देवी-देवताओं पर टीका-टिप्पणी की जाती है; देवताओं की वेशभूषा बनाकर भीख मांगी जाती है, व्यावसायिक विज्ञापनों में देवताओं का 'मॉडल'के रूप में उपयोग किया जाता है। नाटक-चलचित्रों (फिल्मों) के माध्यम से भी देवताओं का अनादर सार्वजनिक रूप से होता है। देवताओं की उपासना का मूल है श्रद्धा। देवताओं के इस प्रकार के अनादर से श्रद्धा पर गलत प्रभाव पडता है और इससे धर्म की हानि होती है । धर्महानि रोकना काल के अनुसार आवश्यक धर्मपालन है। इसके बिना देवता की उपासना परिपूर्ण हो ही नहीं सकती। अतएव श्री रामभक्त भी इस विषय में जागरुक होकर धर्म हानि रोकें ।
रामनवमी को रामराज्य स्थापना का संकल्प करें !
रामराज्य में प्रजा धर्माचरणी थी, इसीलिए उसे श्रीराम जैसा सात्त्विक राज्यकर्ता मिला और आदर्श रामराज्य का उपभोग कर पाए। उसी प्रकार हम भी धर्माचरणी और ईश्वर का भक्त बनेंगे, तो पहले के समान ही रामराज्य (धर्माधिष्ठित हिन्दु राष्ट्र) अब भी अवतरित होगा !
नित्य धर्माचरण और धर्माधिष्ठित आदर्श राज्यकारभार करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम अर्थात प्रभु श्रीराम के काल में अपराध, भ्रष्टाचार आदि के लिए कोई स्थान नहीं था ऐसी रामराज्य की ख्याति थी। ऐसा आदर्श राज्य (हिन्दू राष्ट्र) स्थापना का निश्चय करें और धर्महानि रोकें।


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