धर्म-अध्यात्म

जानिए कैसे प्रचलित हुई संत रविदास की कहावत 'मन चंगा तो कठौती में गंगा'

Bhumika Sahu
16 Feb 2022 6:38 AM GMT
जानिए कैसे प्रचलित हुई संत रविदास की कहावत मन चंगा तो कठौती में गंगा
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'मन चंगा तो कठौती में गंगा' एक ऐसी कहावत है जिसे आज भी लोग अक्सर इस्तेमाल करते हैं. लेकिन क्या आपको वो किस्सा पता है, जिसके कारण ये कहावत इतनी मशहूर हो गई ? आइए आज संत रविदास जयंती के मौके पर आपको बताते हैं इस कहावत से जुड़ा किस्सा.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अक्सर आपने लोगों को कहते सुना होगा 'मन चंगा तो कठौती में गंगा'. ये एक मशहूर कहावत है जो लोगों को ये संदेश देती है कि अगर किसी काम को करने के लिए आपकी मंशा अच्छी है, तो आपका काम मां गंगा की तरह पवित्र है. उसे करने में कोई हिचक न करें. ये कहावत संत रविदास (Sant Ravidas) ने कही थी. संत रविदास का जन्म एक चर्मकार परिवार में हुआ था. अपने परिवार के भरण पोषण के लिए वो जूता बनाने का काम करते थे, जो उनका पैतृक काम था. लेकिन उनके मन में भगवान की भक्ति बसी थी. इन परिस्थितियों के बीच एक ऐसा किस्सा सामने आया जिसने लोगों को संत रविदास की भक्ति की शक्ति को दिखाया और लोगों को उनका मुरीद बना दिया. इसी से 'मन चंगा तो कठौती में गंगा' की कहावत सबके सामने आयी. हर साल माघ मास की पूर्णिमा (Magh Purnima) तिथि को संत रविदास जयंती (Sant Ravidas Jayanti 2022) मनाई जाती है. इस मौके पर आप भी जानिए इस कहावत से जुड़ा किस्सा.

जानिए कैसे सच साबित हुई संत रविदास की कहावत
संत रविदास अपने जन्म के समय से ही काफी दयालु थे. वे संतों, फकीरों और जरूरतमंदों का बहुत ध्यान रखते थे. ऐसा कोई भी उनके समक्ष आ जाए तो वे उसकी सेवा करते और बिना पैसे लिए ही अपने हाथों से बने जूते पहना देते थे. उनके इस स्वभाव से उनका परिवार परेशान था, क्योंकि इससे घर का खर्च चलाना भी मुश्किल हो जाता था.
ऐसे में रविदास के पिता ने उन्हें घर से बाहर अलग रहने के लिए जमीन दे दी और अपनी आजीविका और भरण पोषण स्वयं करने के लिए कह दिया. रविदास ने उस जमीन पर अपनी कुटिया बना ली और अपना पारंपरिक काम करते रहे. जूते बनाकर जो भी पैसे ​कमाते, उससे संतों की सेवा करते और बचे धन से अपना गुजारा करते.
एक बार एक ब्राह्मण उनके पास आए और बोले में मां गंगा के दर्शन के लिए जा रहा हूं. तुम मुझे वहां जाने के लिए जूते दे दो. रविदास ने बगैर पैसे लिए उन्हें जूते पहना दिए और एक सुपारी देते हुए कहा कि ये मां गंगा को मेरी ओर से अर्पित कर देना. ब्राह्मण ने बिना मन के रविदास जी की दी हुई सुपारी अपने पास रख ली और गंगा स्नान के लिए चल पड़े.
गंगा स्नान करने के बाद उन्होंने गंगा मैया की पूजा की और चलते समय बिना मन के वो सुपारी उछालकर गंगा में फेंक दी. तभी मां गंगा प्रकट हुईं उनके हाथ में रविदास की दी हुई सुपारी थी. तभी उन्होंने एक सोने का कंगन ब्राह्मण को दिया और कहा कि मेरी तरफ से ये रविदास को दे देना.
ब्राह्मण जब रविदास के पास गया तो भावुक होकर उन्हें कंगन देते हुए बोला रविदास जी मैंने जीवनभर मां गंगा की पूजा अर्चना की, लेकिन कभी उनके दर्शन न कर सका. लेकिन आपकी भक्ति के प्रताप से आज मुझे गंगा मैया के दर्शन मिले हैं और उन्होंने न सिर्फ आपकी सुपारी को स्वीकार किया बल्कि ये सोने का कंगन भी आपके लिए दिया है.
धीरे धीरे सोने के कंगन की बात पूरे इलाके में फैल गई. लेकिन कुछ लोग इसे ढोंग कहने लगे और बोले कि रविदास जी अगर आप सच्चे भक्त हैं तो गंगा मैया से दूसरा कंगन भी लाकर दिखाइए. इसके बाद रविदास जी भक्ति में लीन होकर भजन गाने लगे. वहीं उनके पास वो बर्तन रखा था, जिसमें वो चमड़ा साफ करने के लिए पानी भरकर रखते थे. रविदास जी के भजन से मां गंगा प्रसन्न हो गईं और उसी पानी से प्रकट हो गईं और रविदास जी को दूसरा कंगन सौंप दिया. इसके बाद संत रविदास जी की हर तरफ जय-जयकार होने लगी और तभी से ये कहावत प्रचलित हो गई कि 'मन चंगा तो कठौती में गंगा'.


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