धर्म-अध्यात्म

जानिए कब से कब तक रहेगा चातुर्मास?

Ritisha Jaiswal
5 July 2022 9:23 AM GMT
जानिए कब से कब तक रहेगा चातुर्मास?
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हिंदू कैलेंडर के अनुसार, चातुर्मास (Chaturmas) आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से प्रारंभ होता है

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, चातुर्मास (Chaturmas) आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से प्रारंभ होता है और यह कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को खत्म होता है. सामान्य भाषा में कहें, तो चातुर्मास देवशयनी एकादशी को शुरु होता है. इस दिन भगवान विष्णु योग निद्रा में चार माह के लिए चले जाते हैं. फिर देवउठनी एकादशी के दिन श्रीहरि योग निद्रा से बाहर आते हैं, तब चातुर्मास का समापन होता है. देवउठनी एकादशी को देवोत्थान एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी कहते हैं. श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ मृत्युञ्जय तिवारी से जानते हैं कि इस साल चातुर्मास कब से कब तक है और चातुर्मास से हमें क्या प्रमुख संदेश मिलता है.

चातुर्मास का प्रारंभ: 10 जुलाई, दिन रविवार, देवशयनी एकादशी से
चातुर्मास का समापन: 04 नवंबर, दिन शुक्रवार, देवउठनी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी पर
चातुर्मास क्या है?
चातुर्मास का शाब्दिक अर्थ है चार माह. ये चार माह व्यक्ति को संयम और सहिष्णुता की साधना के लिए प्रेरित करते हैं. चातुर्मास का सिर्फ धार्मिक महत्व ही नहीं है, इसके नियम सांस्कृतिक, सामाजिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से भी बड़े उपयोगी हैं. इसके नियम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जुड़े होने के कारण मन और जीवन को श्रेष्ठता प्रदान करते हैं. चातुर्मास के चार माह परंपरा, धर्म, संस्कृति और सेहत को एक सूत्र में ​पिरोते हैं.
चातुर्मास के 4 प्रमुख संदेश
1. प्रकृति की पूजा
चातुर्मास प्रकृति की पूजा करने का समय है. इस अवधि में पृथ्वी पर असंख्य जीव, नन्हें पौधे और वनस्पतियों का सृजन होता है. चातुर्मास में पीपल को जल देने, तुलसी को सींचने और अक्षय नवमी को आंवले के पेड़ की पूजा पर्यावरण को सहेजने का ही कार्य है. पर्यावरण को सहेजने का भाव हमारी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है. जीवनदायनी तुलसी, आंवला और पीपल के पेड़ और पौधों को रक्षा चातुर्मास के नियमों का हिस्सा है.
2. संयम और ठहराव
चातुर्मास संयम को साधने का संदेश देता है. इसमें मन, आचरण और व्यवहार का संयम आवश्यक है. संयमित आचरण से हम मन को वश में करना सीखते हैं, साथ ही धैर्य और समझ भरा व्यवहार भी करते हैं. चातुर्मास ऐसा ही अवसर है, जिसमें हम स्वयं के साथ दूसरों के अस्तित्व को भी स्वीकार कर उसे सम्मान देते हैं. यह सह-अस्तित्व की भावना को प्रबल करता है. स्वयं के अंदर और बाहर के अंतर्विरोध और संघर्ष का अंत होना प्रारंभ हो जाता है.
3. सेहत की सुरक्षा
चातुर्मास सेहत और उससे जुड़ी जागरूकता का भी संदेश देता है. इन चार माह में कंद मूल और हरी सब्जियां खाना वर्जित है क्योंकि इस समय में ही जीवाणुओं का प्रकोप अधिक होता है. इन चार माह में अपच, अजीर्ण और वायु विकार जैसी सेहत से जुड़ी परेशानियां वातावरण में आद्रता के कारण बढ़ती हैं. बरसात में खानपान का संयम रखना जरूरी है. सावन में साग, भादों में दही, अश्विन में दूध और कार्तिक में दाल नहीं खाते हैं. ये सभी नियम वैज्ञानिक सोच का परिणाम हैं. दूध और दही से वात एवं कफ बनता है. इस वजह से दूध और दही नहीं खाते हैं.
4. नियमों का व्यावहारिक पक्ष
चातुर्मास का व्यावहारिक कारण भी है, जिनकी वजह से मांगलिक कार्य नहीं होते हैं. चातुर्मास का प्रारंभ खेती-बाड़ी वाले काम की अधिकता के समय होता है. इस समय कृषि आधारित परिवार कृषि कार्य में व्यस्त रहते हैं. खेत-खलिहान में ज्यादा से ज्यादा समय देते हैं. इस स्थिति में मांगलिक कार्यक्रम या सामाजिक अनुष्ठान कर पाना संभव नहीं है. बरसात में रोग बढ़ते हैं, इसलिए भी इनको करने से बचा जाता है.


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