धर्म-अध्यात्म

जानिए कैसे बनता है कुंडली में कालसर्प योग

Tara Tandi
26 Feb 2021 11:45 AM GMT
जानिए कैसे बनता है कुंडली में कालसर्प योग
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ज्योतिष शास्त्र में नवग्रह का अधिक महत्व बताया गया है।

जनता से रिश्ता बेवङेस्क | ज्योतिष शास्त्र में नवग्रह का अधिक महत्व बताया गया है। कहा जाता है जब यह ग्रह कुंडली में शुभ स्थिति में होते हैं तो कुंडली के जातक को बहुत अच्छा प्रभाव देते हैं। परंतु वहीं अगर कोई भी ग्रह कुंडली में अशुभ हो जाए तो जातक के जीवन को पूरी तरह से खराब कर देता है। अगर बात करें राहु और केतु ग्रह की तो उन्हें पाप ग्रह का दर्जा प्राप्त है। धार्मिक कथाओं के मुताबिक दरअसल राहु केतु एक ही राक्षस के दो भाग हैं, सिर को राहु और धड़ को केतु माना जाता है। जिसका अर्थात राहु के पास धड़ नहीं है और केतु के पास अपना मस्तिष्क नहीं है। शास्त्रों के अनुसार इनकी आकृति सर्प की तरह बताई गई है। विद्वान बताते हैं जिस प्रकार सर्प की पकड़ से इंसान जकड़ जाता है और उससे छुटकारा पाना मुश्किल हो जाता है ठीक वैसे ही राहु केतु ग्रह के अशुभ प्रभाव से बचना भी नामुमकिन सा हो जाता है। बता दें जब राहु-केतु की स्थिति कुंडली में अशुभ होती है तो कुंडली में कालसर्प और पितृदोष जैसे दोष उत्पन्न हो जाते हैं। मगर ये दोष कैसे बनता है, इसका फल कैसा होता है, आदि के बारे में लोग नहीं जानते, तो आइए आपको बताते हैं कि इससे संबंधित खास बातें-

कैसे बनता है कालसर्प योग-

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्मकुंडली में राहु और केतु के मध्य जब सभी ग्रह आ जाते हैं तो कालसर्प योग का निर्माण होता है। कुल 12 प्रकार के कालसर्प योग होते हैं- पदम् कालसर्प योग, महापद्म कालसर्प योग, तक्षक काल सर्पयोग, कर्कोटक कालसर्प योग, शंख्चूर्ण कालसर्प योग, पातक काल सर्पयोग, विषाक्त काल सर्पयोग और शेषनाग कालसर्प योग।

कालसर्प योग का फल

कहा जाता है जिस व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प योग होता है उसे जीवन के 42 वर्षों तक संघर्ष करता है। अगर राहु-केतु का समय पर उपाय नहीं किया जाए तो व्यक्ति 42 वर्षों तक जीवन में सफल होने के लिए संघर्ष करता है। इसलिए जब पता चल जाए कि कुंडली में कालसर्प दोष है, उसी वक्त किसी ज्योतिषी की सलाह लेकर इसके लिए उपाय कर लेने चाहिए।

कुंडली में कैसे होता है पितृदोष का निर्माण

ज्योतिष विद्या के अनुसार जन्म कुंडली का 9वां घर पिता का घर होता है। जिसे भाग्य भाव तथा धर्म भाव भी कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब नवम भाव में सूर्य, राहु या केतु विराजमान हो जाते हैं तो, पितृ दोष नाम का अशुभ योग बनता है।

वहीं सूर्य और राहू जिस भी भाव में बैठते हैं तो इससे उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते हैं और पितृ दोष की स्थिति बनती है। जातक की कुंडली में अगर पितृ दोष पैदा हो जाए तो किन्ही परिस्थितियों में व्यक्ति को मृत्यु तुल्य कष्ट भी उठाने पड़ते हैं।

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