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धर्म-अध्यात्म
जानिए कैसे बने कालभैरव काशी के कोतवाल शिव के पांचवें रूप
Tara Tandi
16 Jun 2022 12:52 PM GMT
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हर माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी के रूप में मनाया जाता है. कहा जाता है कि इसी दिन शिव जी ने कालभैरव का रूप धारण किया था.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हर माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी के रूप में मनाया जाता है. कहा जाता है कि इसी दिन शिव जी ने कालभैरव का रूप धारण किया था. कालभैरव को शिव जी का रौद्ररूप माना गया है. माना जाता है कि बाबा कालभैरव (Baba Kalbhairav) की पूजा करने से कई तरह के रोगों से मुक्ति मिलती है, शत्रुओं से मुक्ति मिलती है. कालभैरव की पूजा करने से व्यक्ति काल रूपी भय से मुक्त हो जाता है. इस बार कालाष्टमी 20 जून को सोमवार के दिन पड़ रही है. अष्टमी तिथि 20 जून रात 09:01 बजे शुरू होगी और 21 जून रात 08:30 बजे समाप्त होगी. उदया तिथि के हिसाब से कालाष्टमी 21 जून को मनाई जाएगी. बाबा कालभैरव को काशी का कोतवाल भी कहा जाता है. यहां जानिए आखिर शिव का पांचवें रूप कालभैरव काशी के कोतवाल बन गए.
ये है पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर बहस छिड़ गई. जब शिव जी का जिक्र आया तो ब्रह्मा जी के पांचवें मुख ने शिव जी को अपशब्द कह दिए. इससे शिवजी को क्रोध आ गया और उनके क्रोध से कालभैरव ने जन्म लिया. क्रोधवश कालभैरव ने ब्रह्मा जी के पांचवें सिर को काट दिया. लेकिन ये सिर कटने के बाद उनके हाथ में चिपक गया. कालभैरव ने इसे छुड़ाने की काफी कोशिश की, लेकिन ये सिर नहीं छूटा.
ब्रह्महत्या का लगा पाप
इससे कालभैरव पर ब्रह्महत्या का पाप लग गया. तब काल भैरव से कहा गया कि उन्हें ब्रह्महत्या के लिए प्रायश्चित करना होगा. जिस दिन उनका प्रायश्चित पूरा हो जाएगा, ब्रह्मा जी का सिर उनके हाथ से खुद छूट जाएगा. प्रायश्चित के लिए कालभैरव ने त्रिलोक की यात्रा की. लेकिन जैसे ही वे काशी में पहुंचे, उनके हाथ से खुद ही ब्रह्मा जी का सिर छूट गया.
ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त होने के बाद काशी में बसे
काशी में ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त होने के बाद बाबा कालभैरव ने वहीं वास करने का निर्णय लिया और हमेशा के लिए काशी में स्थापित हो गए. इसके बाद शिवजी ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि आज से तुम्हें इस नगरी में काशी के कोतवाल के नाम से जाना जाएगा. आज काशी को शिव की नगरी कहा जाता है और बाबा विश्वनाथ को यहां राजा की तरह पूजा जाता है, वहीं कालभैरव को काशी का कोतवाल कहा जाता है.
काशी के कोतवाल की मर्जी के बगैर कुछ नहीं होता
कहा जाता है कि काशी नगरी की देखभाल का जिम्मा बाबा कालभैरव के पास है. यहां कालभैरव की मर्जी के बगैर कुछ भी नहीं होता है. यहां बाबा कालभैरव ही लोगों का न्याय करते हैं. वे लोगों को सजा भी देते हैं और आशीर्वाद भी. बाबा विश्वनाथ के दर्शन से पहले भक्त यहां कालभैरव के दर्शन करते हैं. कहा जाता है कि कालभैरव के दर्शन के बगैर बाबा विश्वनाथ के दर्शन पूर्ण नहीं होते.
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