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धर्म-अध्यात्म
जानिए कैसे अलग हैं कुंभ, अर्धकुंभ, पूर्णकुंभ और महाकुंभ, ग्रहों के गोचर से ऐसा जुड़ा
Deepa Sahu
6 March 2021 2:05 PM GMT
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दुनियाभर में सनातन धर्म का सबसे प्रसिद्ध महापर्व और धार्मिक मेला कुंभ तो हम सभी जानते हैं।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क: दुनियाभर में सनातन धर्म का सबसे प्रसिद्ध महापर्व और धार्मिक मेला कुंभ तो हम सभी जानते हैं। लेकिन इसे लेकर मन में तमाम तरह की जिज्ञासाएं भी होती हैं। कभी इसकी शुरुआत कैसे हुई तो कभी इसके साथ जुड़ी धार्मिक मान्यताओं को जानने की जिज्ञासा होती है। तो कभी यह सवाल भी मन में उठता है कि आखिर ये तीन तरह का कुंभ और अलग-अलग वर्षों में आयोजित होने वाला कैसा महापर्व है? अगर आपके मन में भी यही सवाल हैं तो यह आर्टिकल आपके बहुत काम है… यहां कुंभ को लेकर सभी सवालों के जवाब हैं। आइए जानते हैं…
कुंभ, अर्धकुंभ,पूर्णकुंभ और महाकुंभ एक नजर में
प्रत्येक 3 साल में हरिद्वार, उज्जैन, प्रयागराज और नासिक में एक बार आयोजित होने वाले मेले को कुंभ के नाम से जानते हैं। वहीं हरिद्वार और प्रयागराज में प्रत्येक 6 वर्ष में आयोजित होने वाले कुंभ को अर्धकुंभ कहते हैं। वहीं केवल प्रयागराज में प्रत्येक 12 साल में आयोजित होने वाले कुंभ को पूर्ण कुंभ मेला कहते हैं। इसके अलावा केवल प्रयागराज में 144 वर्ष के अंतर पर आयोजित होने वाले कुंभ को महाकुंभ मेला कहते हैं।
इस तरह समझिए कुंभ के आयोजन की प्रक्रिया
प्रत्येक 12 वर्ष में पूर्णकुंभ का आयोजन होता है। मान लीजिए कि उज्जैन में कुंभ का अयोजन हो रहा है, तो उसके बाद अब तीन वर्ष बाद हरिद्वार, फिर अगले तीन वर्ष बाद प्रयागराज और फिर अगले तीन वर्ष बाद नासिक में कुंभ का आयोजन होगा। उसके तीन वर्ष बाद फिर से उज्जैन में कुंभ का आयोजन होगा। इसी तरह जब हरिद्वार, नासिक या प्रयागराज में 12 वर्ष बाद कुंभ का आयोजन होगा तो उसे पूर्णकुंभ कहेंगे। हिंदू पंचांग के अनुसार देवताओं के बारह दिन अर्थात मनुष्यों के बारह वर्ष माने गए हैं इसीलिए पूर्णकुंभ का आयोजन भी प्रत्येक बारह वर्ष में ही होता है।
महाकुंभ को ऐसे जानिए विस्तार से
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक 144 वर्षों में प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन होता है। 144 कैसे? 12 का गुणा 12 में करें तो 144 आता है। दरअसल, कुंभ भी बारह होते हैं जिनमें से चार का आयोजन धरती पर होता है शेष आठ का देवलोक में होता है। इसलिए प्रत्येक 144 वर्ष बाद प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन होता है। महाकुंभ का महत्व अन्य कुंभों की अपेक्षा अधिक माना गया है। वर्ष 2013 में प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन हुआ था क्योंकि उस वर्ष पूरे 144 वर्ष पूर्ण हुए थे। कहा जा रहा है कि अब अगला महाकुंभ 138 वर्ष बाद आएगा।
ग्रहों के गोचर और स्थान से ऐसे जुड़ा है कुंभ
कुंभ राशि में बृहस्पति का प्रवेश होने पर एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर कुंभ का पर्व हरिद्वार में आयोजित किया जाता है। हरिद्वार और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ का आयोजन होता है। वहीं मेष राशि के चक्र में बृहस्पति एवं सूर्य और चंद्र के मकर राशि में प्रवेश करने पर अमावस्या के दिन कुंभ का पर्व प्रयाग में आयोजित किया जाता है। एक अन्य गणना के अनुसार मकर राशि में सूर्य का एवं वृष राशि में बृहस्पति का प्रवेश होने पर कुंभ पर्व प्रयाग में आयोजित होता है।
तब होता है नासिक और उज्जैन में
सिंह राशि में बृहस्पति के प्रवेश होने पर कुम्भ पर्व गोदावरी के तट पर नासिक में होता है। अमावस्या के दिन बृहस्पति, सूर्य एवं चंद्र के कर्क राशि में प्रवेश होने पर भी कुंभ पर्व गोदावरी तट पर आयोजित होता है। वहीं सिंह राशि में बृहस्पति एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर यह पर्व उज्जैन में होता है। इसके अलावा कार्तिक अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्र के साथ होने पर एवं बृहस्पति के तुला राशि में प्रवेश होने पर मोक्ष दायक कुंभ उज्जैन में आयोजित होता है।
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